१२२/१२२/१२२/१२२
न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है,
उसे हारने का इशारा हुआ है.
***
उसे चाँद तारों की संगत मिली थी,
वो आवारगी में हमारा हुआ है.
***
मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,
मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.
***
बचा है वो ऐसे, जिसे डूबना था,
कि फिर कोई तिनका सहारा हुआ है.
***
सिकुड़ने लगा है मेरा आसमां अब,
नज़र से नज़र तक, नज़ारा हुआ है.
***
वो आतिशफिशा था, मगर अब ये हालत,
कि बुझते बुझाते शरारा हुआ है.
***
नदी की मुहब्बत में आँसूं बहाकर,
समंदर भी मीठे से खारा हुआ है.
***
चढ़ा जो नशा वो भी उतरेगा इक दिन,
नशा ही नशे का उतारा हुआ है.
***
वो दीपक भला क्यूँ डरेगा हवा से,
जो खुद आँधियों का सँवारा हुआ है.
***
मुझे देखकर मांग तू भी मुरादें,
तेरा ‘नूर’ टूटा सितारा हुआ है.
******************************************
निलेश 'नूर'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,
मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.
***
सिकुड़ने लगा है मेरा आसमां अब,
नज़र से नज़र तक, नज़ारा हुआ है.
***
चढ़ा जो नशा वो भी उतरेगा इक दिन,
नशा ही नशे का उतारा हुआ है.
***
वो दीपक भला क्यूँ डरेगा हवा से,
जो खुद आँधियों का सँवारा हुआ है.
***
क्या कहने भाई वाह
//वो दीपक भला क्यूँ डरेगा हवा से,
जो खुद आँधियों का सँवारा हुआ है.//
//मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,
मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.// वाह बहुत बढ़िया आदरणीय निलेश जी बहुत खूब
पूरी ग़ज़ल अच्छी हुई है बधाई
धन्यवाद गणेश जी, आप की सलाह विचारणीय लगती है.
आभार
धन्यवाद बैद्यनाथ जी
धन्यवाद कुंती मुखर्जी जी
शुक्रिया नादिर खान साहब
//न समझो लड़ाई वो (में) हारा हुआ है,
उसे हारने का इशारा हुआ है.// मिसरा उला बहुत स्पष्ट नहीं था जरा 'वो' की जगह 'में' कर के देखें, शायद आपको पसंद आये |
//मरूँगा, बचूंगा, नहीं है पता ये,
मगर वार दिल पे, करारा हुआ है.// वाह वाह, यह शेर बहुत ही पसंद आया |
//नदी की मुहब्बत में आँसूं बहाकर,
समंदर भी मीठे से खारा हुआ है.// आहा ! बहुत ही सुन्दर शेर |
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर |
उसे चाँद तारों की संगत मिली थी,
वो आवारगी में हमारा हुआ है.
नदी की मुहब्बत में आँसूं बहाकर,
समंदर भी मीठे से खारा हुआ है........बेहद करारे शेर हैं साहब ...बधाई हो एक अच्छी ग़ज़ल के लिए ..:)
नदी की मुहब्बत में आँसूं बहाकर,
समंदर भी मीठे से खारा हुआ है. .........वाह......क्या बात है.
न समझो लड़ाई वो हारा हुआ है,
उसे हारने का इशारा हुआ है.
उसे चाँद तारों की संगत मिली थी,
वो आवारगी में हमारा हुआ है.
वाह नीलेश जी बहुत खूब कहा .....
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online