22- 1212- 1122
हर रात ख़्वाब के मैं सफ़र में
इक सिर्फ तुझको देखूँ डगर में
कुछ आज मखमली सी लगी धूप
क्या बात है न जाने सहर में
अंगारों पे चला मैं सहम के
इक हौसला भी था मेरे डर में
यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग
है मेरा नाम आज खबर मे
हर शै पे हर मुकाम पे तू थी
तन्हा हुआ न तेरे नगर में
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
कुछ आज मखमली सी लगी धूप
क्या बात है न जाने सहर में
हर शै पे हर मुकाम पे तू थी
तन्हा हुआ न तेरे नगर में
बहुत बढ़िया आदरणीय शिज्जू जी
behatreen ashaaar hai .......
हर शै पे हर मुकाम पे तू थी
तन्हा हुआ न तेरे नगर में bar bar padhne yogya
भाई बैद्यनाथ सारथी जी आपका आभार
आदरणीया मीना पाठक जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय निलेश जी आपका आभार
आदरणीय डॉ आशुतोष सर आपका आभार
बेहतरीन शेर
यूँ हैरतों से देखे मुझे लोग
है मेरा नाम आज खबर मे....वाह शिज्जू साहब ...वाह
बहुत सुन्दर रचना बधाई आप को आदरणीय
कठिन बह्र रही होगी... आपने आसान कर दी ... बधाई
आदरणीय शिज्जू जी ..अब मैं आपके उस अशार के मतलब को बखूबी समझ पाया ..मैं पूर्णतया सहमत भी हूँ ..मेरी शंका के निवारण के लिए धन्यवाद ..सादर
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