कविता :- कहाँ गणतंत्र
फेल हुए सब मंत्र
कहाँ गणतंत्र ?
किसने बोया कौन काटता
किसको बांटे कौन बांटता
थोथे सारे यंत्र
कहाँ गणतंत्र ?
तुम ही बोलो
कब बोलोगे ?
किसने खोया कौन पा रहा
देश राग ये कौन गा रहा
कवि कहाँ क्यों मौन ?
आदर्शों की हाट बिक गयी
जो सच्ची थी ठाट बिक गयी
मिथ्या का आधार
है बंटाधार
कवि तुम कब बोलोगे ?
आम आदमी पिसा जा रहा
संघर्षों में मात खा रहा
अनुनय विनय पतन आघात
किसके हाथ अनाथ
कवि कुछ तो बोलोगे ?
मीनारें सज गयीं सुनहरी
अपनी ही सत्ता है बहरी
खेल मदारी का है जारी
आज जमूरे की है बारी
आँखे खोल कवि कुछ बोल ?
आज हिमाला फिर पिघला है
पीर नहीं यह सच निकला है
जनता मांगे हक
नहीं बहक
कवि तुम कब बोलोगे ?
आस नहीं विश्वास भी खोया
पाप है किसका किसने धोया
गंगा बंधकर रुदन करती
सब कुछ सहती
कवि तू पढ़ कुछ मन्त्र
कहाँ गणतंत्र ?
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