वो तेरे नखरे तुझे कुछ खास करते हैं
आज भी हम तो मिलन की आस करते हैं
इन हवाओं में महकती है तेरी खुशबू
खोलकर खिडकी तेरा अहसास करते हैं
बन गयी नासूर मुझको खामुशी मेरी
ये जुबां वाले मेरा उपहास करते हैं
बेवफाई कर नहीं सकता सनम मेरा
लोग यूँ ही आजकल बकवास करते हैं
कौन आगे बोलता है अब सितमगर के
बैठते हैं साथ में और लाश करते हैं
उमेश कटारा
मौलिक एंव अप्रकाशित
Comment
कटारा जी
ग़ज़ल के भाव अच्छे है i बधाई हो i
सुंदर प्रस्तुति पर बधाई .
जी शिज्जु शंकर जी काफिया गडबड है सही किये देता हूँ
आदरणीय उमेश कटारा जी आपकी ये रचना ग़ज़ल होते होते रह गई काफियाबंदी एक बार फिर देख लें
आ. उमेश जी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई !!
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को
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