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कहा कब कि दुनिया ये ज़न्नत नहीं है
तुम्हे पा सकें ऐसी किस्मत नहीं है //1//
मोहब्बत को ज़ाहिर करें भी तो कैसे
पिघलने की हमको इजाज़त नहीं हैं //2//
तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है. //3//
बहुत सब्र है चाहतों में तुम्हारी
नज़र में ज़रा भी शरारत नहीं है //4//
सुलगती हुई आस हर बुझ गयी, पर
हमें आँधियों से शिकायत नहीं है //5//
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
ग़ज़ल पर हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आ० विजेश कुमार जी , नीरज मिश्रा जी
तारीफ हम कुछ करें भी तो कैसे ,
हमारी तो इतनी ज़ुर्रत नही है ।
आदरणीय प्राची जी बहुत सुन्दर ग़ज़ल।
इस ग़ज़ल पर आपकी टिप्पणी का इंतज़ार था वीनस जी..
//हर शेर तागज्जुल से लबरेज़ है//
इस टिप्पणी को पढ़ यह तो समझ आ गया था की कुछ सराहना ही है..पर क्या ? इसके बारे में आदरनीय राणा जी को ऑनलाइन देख उनसे पता किया.. :)) और तगज्जुल तखय्युल और तवज्जुन आदि ग़ज़ल के तीन महत्वपूर्ण अन्तर्निहित तत्वों के बारे में पता चला..
ग़ज़ल के प्रस्तुतीकरण पर आपकी दाद मिलना मेरे लिए बहुत मायने रखता है..इस हौसला अफजाई के लिए हार्दिक धन्यवाद वीनस जी.
आदरणीय सौरभ जी,
ग़ज़ल की ज़मीन, वैचारिक अभिव्यक्ति और शैली आपको पसंद आये... ये मेरे लेखन के लिए उत्साहवर्धक है, संतोषप्रद है..
प्रस्तुत करने योग्य गज़लें तो बहुत कम ही लिख पाती हूँ..पर सीखने और अभ्यास के क्रम में जो ठीक ठाक सी रचना लगती है उसे ही सांझा करती हूँ.. ये छोटा सा प्रयास आपको रुचा मेरे लिए आप सम सुधिपाठकों और श्रेष्ठ रचनाकारों का यह आशीर्वाद ही महत्वपूर्ण है..
सादर धन्यवाद
शानदार ग़ज़ल है
हर शेर तागज्जुल से लबरेज़ है
हर शेर पर ढेरों दाद
आदरणीया प्राचीजी, इस ग़ज़ल पर इतने विलम्ब से आने के लिए क्षमा.
इस ग़ज़ल की ऊँचाई या गहराई चकित करती है. मानवीय मनोदशा की पारिस्थिक विवशता को जिस विश्वास से शब्द मिले हैं, वह श्लाघनीय तो है ही, अनुकरणीय भी है. यह अवश्य है कि आपकी ग़ज़ल की शैली निराली है जो रिवायती ग़ज़ल के अंदाज़ से एकदम से अलहदी है. लेकिन भाषा का अंतर, विचारों का अंतर, संप्रेषणीयता को कितना प्रभावित करते हैं, यह ग़ज़ल उसका उदाहरण है.
यह भी अवश्य है कि आप ग़ज़ल नहीं ही लिखती हैं. लेकिन इस रचना-निवेदन ने बहुत कुछ स्थापित किया है. बहुत खूब !
सादर
ग़ज़ल को पसंद कर सराहने और एक शेर को विशेष रूप से पसंद कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद आ० सचिन देव जी
तो वादों की जानिब कदम क्यों बढ़ाएं
निभाने की जब कोई सूरत नहीं है
बहुत खूब आदरणीया.. प्राची जी, आपकी बेहतरीन गजल मैं से ये शेर बेहद पसंद आया ! आपको दिली मुबारकबाद आपकी इस बेहतरीन गजल के लिए !
ग़ज़ल के चंद शेरों पर हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद आ० डॉ० आशुतोष मिश्रा जी
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