हथियार
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क्या नारी ने
सारी शक्तिया
समाहित कर ली हैं
खुद में ही
या इस्तेमाल हो रही हैं
हथियार की तरह
या हथियार बन
उठ खड़ीं हो गयी हैं
खुद ही संघार
करने के लिए
पापियों का
क्या अच्छे लोग भी
फंस रहे हैं इस
मकड़जाल में
खूब की हमने भी
माथा पच्ची पर
भगवान् ना थे हम
कि सुन-समझ-देख पाए
आखिर मांजरा क्या हैं
समझ पाए कि कौन
इस्तेमाल हो रहा हैं
कौन किया जा रहा हैं
और कौन खुद ही
अनजाने में ही सही
इस्तेमाल हो चुका हैं
साक्षात् भगवान् भी
आ जाये आज तो
ना समझा पाए हमें
कारक कर्म और कर्ता
के बीच की कड़ी
असमंजस में हैं हम
किसे कहें सही
मरने वालों को या
जिन्दा रह
सारे आरोपों को
झेलने वालो को
इस असमंजस से
ये नारी तू ही हैं बस
जो उबार सकती हैं हमें
पर अफ़सोस तू
खामोश हैं|.
सविता मिश्रा
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सविता जी i
सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए आपको बधाई i
थोड़ी सपाट बयानी हो गई है , रचना का विषय आपने अच्छा चुना है । कई पंक्तियाँ भी अच्छी लगी । शुभकामनायें ।
धन्यवाद अविनाश भाई आपका ...सही कहें आप ...कानून की जड़ बहुत कमजोर हैं
पापियों का
क्या अच्छे लोग भी
फंस रहे हैं इस
मकड़जाल में ...ye to har kanoon k sath hota hai....adhikar prapti ki rah me kuchh niraparadho ki bali bhi chadh jati hai सविता मिश्रा ji.....पर अफ़सोस तू
खामोश हैं|.....ubar इस असमंजस से !
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