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प्रेम तृणों से .

प्रेम तृणों से  …….

पलक पंखुड़ी में प्रणय अंजन से 
सुरभित संसृति का श्रृंगार करो 
भ्रमर गुंजन के मधुर काल में 
कुंतल पुष्प श्रृंगार करो 
तृप्त करो तुम नयन तृषा को 
मिलन क्षणों को स्वीकार करो 
अपने उर में अपने प्रिय की 
अनुपम सुधि से श्रृंगार करो 
विस्मृत कर प्रतिकार सभी तुम 
श्वासों में प्रेम श्रृंगार करो 
चिर सुख के प्यासे अधरों पर 
तृप्ति वृष्टि का संचार करो 
अभिलाषाओं की बस्ती में तुम 
प्रेम तृणों से श्रृंगार करो, 
प्रेम तृणों से श्रृंगार करो ……..

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2013 at 7:20pm

प्रिय की श्रंगार कामना भी सुरति  है

आपको बधाई i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2013 at 4:47pm

आदरणीय सुशील भाई , सुन्दर श्रृंगार रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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