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लाड़ली चली.. (अन्नपूर्णा बाजपेई)

बाबा की दहलीज लांघ चली

वो पिया के गाँव चली

बचपन बीता माँ के आंचल

सुनहरे दिन पिता का आँगन

छूटे संगी सहेली बहना भैया

मिले दुलारी को अब सईंया

मीत चुनरिया ओढ़ चली  

बाबा की ................

माँ की सीख पिता की शिक्षा

दुलार भैया का भाभी की दीक्षा

सखियों का स्नेह लाड़ बहना का

वो रूठना मनाना खेल बचपन का

भूल सब मुंह मोड चली

वो पिया के ...............

परब त्योहार हमको  बुलाना

कभी तुम न मुझको भुलाना

साजन संग मै आऊँगी

खुशियाँ संग ले आऊँगी

वो लाड़ली चली

बाबा की ..................

 

अप्रकाशित एवं मौलिक         

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Comment

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Comment by annapurna bajpai on December 28, 2013 at 7:30pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 1:44am

आंचलिक भाव से समृद्ध इस सनातनी गीत के लिए आपको सादर बधाई, आदरणीया अन्नपूर्णाजी.. .

शुभकामनाएँ

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 10:09pm

आ0 सत्य नारायण सिंह जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 10:08pm

आदरणीय ब्रम्हचारी जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by Satyanarayan Singh on December 25, 2013 at 8:58pm

आ. अन्नपूर्णा जी इस मार्मिक रचना के प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.

Comment by S. C. Brahmachari on December 25, 2013 at 8:23pm
पुरानी फिल्म का एक गाना याद आ रहा है ....... अब की बरस भेज भैया को बाबुल , सावन मे लिजों बुलाय रे ! --- मर्म को उद्वेलित करती मार्मिक रचना प्रस्तुत करने के लिए बधाई स्वीकार करे ~~~~~~~~~~~~
Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:26pm

आ0 अरुण शर्मा जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:25pm

आ0 अखिलेश जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:22pm

आ0 जितेंद्र जी आपका हार्दिक आभार । 

Comment by annapurna bajpai on December 25, 2013 at 6:21pm

 आ0 विजय निकोर जी आपका हार्दिक आभार । 

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