नया साल है चलकर आया देखो नंगे पांव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव
धधक रही भठ्ठी में
महुवा महक रहा है
धनिया की हंसुली पर
सुनरा लहक रहा है
कारतूस की गंध
अभी तक नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती
या, फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव !
माहू से सरसों, गेहूं को
चलो बचाएं जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों चर जाएं जी
ठंडी रात में बूढ़ा-माई
बडबड नहीं करें
हम अपने हिस्से का सूरज
खुद ही चलो गढ़ें
धूप कड़ी हो तो दे जाएं
थोड़ी थोड़ी छाँव
ठंडी ठंडी पुरवाई से
बेहतर है पछियांव.. .
****
मौलिक एवं अप्राकाशित
Comment
हम अपने हिस्से का सूरज
खुद ही चलो गढ़ें
धूप कड़ी हो तो दे जाएं
थोड़ी थोड़ी छाँव
ठंडी ठंडी पुरवाई से
बेहतर है पछियांव..
नव वर्ष पर बहुत बढ़िया नवगीत...
नव वर्ष पर बहुत ही शानदार गीत .... क्या कहने !!!
ateev sundar mananiy, Jay ho.
बहुत सुंदर रचन....कवि की सुंदर कल्पना भी लेखनी की यथार्थ भी, आशा भी आश्वासन भी.....
हम अपने हिस्से का सूरज
खुद ही चलो गढ़ें
धूप कड़ी हो तो दे जाएं
थोड़ी थोड़ी छाँव
ठंडी ठंडी पुरवाई से
बेहतर है पछियांव......बहुत खूब जितनी तारीफ करें कम लगता है.सादर
कुंती
आपका यह सुंदर गीत मन को छू गया आदरनीय राणा साहब, आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती या
फिर हो डुमरांव
कब तक पानी पर तैरायें
काग़ज़ वाली नांव .,........sumpurna geet bejod hai par ye band ....jisme mere district ka nam aaya hai ....ativishesh ho gaya hai .........dhanyavad ..................hardik dhanyabad
गाँव का सुंदर दृश्य परिलक्षित है इस गीत में बधाई राणाप्रताप भाई। और नव वर्ष की शुभकामना ।
सुन्दर गीत के लिए आपको बधाई i |
बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना बहुत 2 बधाई आदरणीय
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