दिन उगे का तो पहर लगता है
यों अभी थोड़ी कसर, लगता है..
साँस लेना भी दूभर लगता है
क्या ये मौसम का असर लगता है
क्या हुआ साथ चलें या न चलें
पर सुगम होगा सफ़र, लगता है
घोर आपत्तियों के मौसम में
मौन तक आज मुखर लगता है
जोश अंदाज़ रवां दौर लिये
मकबरा शांत इधर लगता है
लोग दीवार उठायेंगे ही
छत बना यार अगर लगता है
जब सभी पास रहें हँस-मिल कर
घर तभी प्यार का घर लगता है
बह रही शांत नदी के मन में
एक उल्टी है लहर लगता है
सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है
*************
-सौरभ
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय सौरभ भाई , लाजवाब गज़ल कही है आपने , सभी अशआर बहुत खूब हुये है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
क्या हुआ साथ चलें या न चलें
पर सुगम होगा सफ़र, लगता है
घोर आपत्तियों के मौसम में
मौन तक आज मुखर लगता है
बह रही शांत नदी के मन में
एक उल्टी है लहर लगता है
सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है ---- आदरणीय ये शेर बहुत खास लगे , आपको ढेरों बधाइयाँ ॥
आदरणीय सौरभ सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
घोर आपत्तियों के मौसम में
मौन तक आज मुखर लगता है
जोश अंदाज़ रवां दौर लिये
मकबरा शांत इधर लगता है
लोग दीवार उठायेंगे ही
छत बना यार अगर लगता है
बह रही शांत नदी के मन में
एक उल्टी है लहर लगता है
सांत्वनाएँ जो मिलीं कुछ यों मिलीं
अब निवेदन से भी डर लगता है
मेरे लिए तो असर , मुखर ,इधर जैसे शब्द हमेशा मात्रा गणना में परेशानी पैदा करते थे अब एक अच्छा संकलन मिल गया बहुत-2 आभार
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