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बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था
धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था
इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं
साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था
यार की गलियों गया मैं फिर से लेकर आरज़ू
कुछ पुराने ख्वाब थे हर सिम्त वीराना भी था
कैसे - कैसे लोग मिलते हैं यहाँ देखो सही
बात में चीनी घुली थी दिल मगर काला भी था
वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम
ये जहाँ गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था
अमित दुबे
मौलिक व अप्रकाशित
(संशोधित)
Comment
भाई अमित जी अच्छी ग़ज़ल है .हार्दिक बधाई .
बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था
धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था
ज़िन्दगी गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था
लाजवाब शेर हैं .
इक नदी थी नाव भी थी और था मौसम हसीं
साथ तुम थे बाग़ गुल थे इश्क मस्ताना भी था....जिंदाबाद साहब
वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम
ज़िन्दगी गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था...लाजवाब शेर .....बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल हुई है ! दाद हाजिर है :)
वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम
ज़िन्दगी गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था..................
vishesh taur se bahut hi achha laga
//बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था
धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था// बहुत खूब भाई अमित जी
बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबुल करें
बज़्म थी तारों की उसमें चाँद का पहरा भी था
धूम थी रानाइयों की दिल मेरा तन्हा भी था मनमोहक मतला
वो अज़ब ही दौर था हर बात पर हँसते थे हम
ज़िन्दगी गोया लतीफ़ा मस्त बचकाना भी था वाह वाह
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आ० अमित जी
आदरणीया कुन्ती जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय भंडारी जी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय आशुतोष जी आपका बहुत आभार
आदरणीय राज बुन्देली जी रचना अनुमोदन हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय अभिनव जी आपका हार्दिक आभार
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