सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती हैं
एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ
भीड़ से घिरी उनकी रोशनी
कसमसाकर दम तोड़ देती है
वातावरण में घुले नारे
खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह
कम्पन पैदा करते हैं
सर्द हवाएँ
काँटों की तरह चुभती हैं
अँधेरा गहराता जा रहा है
___
बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय जितेन्द्र भाई, आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!
सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती हैं
एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ
भीड़ से घिरी उनकी रोशनी
कसमसाकर दम तोड़ देती है
आदरणीय बृजेश जी, कम शब्दों में गहरी बात कह दी ।बहुत खूब ....
बहुत जीवंत रचना है भाई बृजेश कुमार जी, कविता ज्यों ज्यों आगे बढ़ती है दृश्य चित्रण करती जाती है. इस सार्थक काव्याभिव्यक्ति हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
अप्रितम आदरणीय बृजेश भाई जी आपने तो शब्दकोष खाली कर दिया. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
बहुत सुंदर
वातावरण में घुले नारे
खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह
कम्पन पैदा करते हैं
सर्द हवाएँ
काँटों की तरह चुभती हैं
अँधेरा गहराता जा रहा है ..............बेहतरीन, उम्दा रचना हेतु बधाई आप को आ० बृजेश जी
भीड़ से घिरी उनकी रोशनी
कसमसाकर दम तोड़ देती है..........मर्मस्पर्शी पंक्ति, बधाई स्वीकारें आदरणीय बृजेश जी
आदरणीय अविनाश जी आपका हार्दिक आभार!
भीड़ से घिरी उनकी रोशनी
कसमसाकर दम तोड़ देती है...nice
आदरणीय अरुण निगम जी, आपका हार्दिक आभार!
जो कुछ भी लिख पाता हूँ, सब यहीं इस मंच पर आप लोगों से ही सीखा है!
सादर!
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