सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती हैं
एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ
भीड़ से घिरी उनकी रोशनी
कसमसाकर दम तोड़ देती है
वातावरण में घुले नारे
खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह
कम्पन पैदा करते हैं
सर्द हवाएँ
काँटों की तरह चुभती हैं
अँधेरा गहराता जा रहा है
___
बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, आदरणीय शिज्जु शकूर जी, आपका हार्दिक आभार!
आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय अजय शर्मा जी आपका हार्दिक आभार! अपना आशीष यूँ ही बनाये रखियेगा!
आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार!
कविताई आपकी किताब पढ़कर ही सीख रहा हूँ! आपकी जितनी किताबें पढनें को मिलती रहेंगी, मैं भी सीख-सीखकर लिखता रहूँगा! आपकी अगली किताब की प्रतीक्षा है!
सादर!
आदरणीय Shyam Narain Verma जी, गिरिराज भंडारी जी, Dr Ashutosh Mishra जी, आप सभी का हार्दिक आभार!
प्रतीकों में विरोध को रेखांकित करने का यह हुनर कहाँ से सीखा भाई................बेहतरीन..................बधाइयाँ.....................
आदरणीय बृजेश जी आपने संक्षेप में लेकिन माहौल का सटीक वर्णन किया है बेहतरीन रचना बधाई स्वीकार करें
सुंदर रचना की बधाई बृजेश भाई॥ आजकल लाइव टेलीकास्ट होने से भी आंदोलन , विरोध प्रदर्शन करने वालों में एक नया जोश भर जाता है , कुछ देर के लिए ही सही ॥
एक अलग वातावरण में ले जाती रचना जहाँ सच की रौशनी तीव्र तो होती है पर कभी भी क्षीण होकर बुझ सकती है .... आदरणीय ब्रिजेश जी ... हार्दिक बधाई आपको ...
.......................................एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ
aur fir .......................................अँधेरा गहराता जा रहा है ...wah kya khoobsoorat virodhabhasi isthiti prastut ki hai ........shreshtha.............bahut bahut shubkamnayen
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