किसको पता कि कौन हूँ मैं ....
कोई शब्द नहीं निःशब्द हूँ मैं ....
खुद के चित्कार में छुप जाता हूँ
मेरा अस्तित्व,
मेरी संवेदनाएं
सन्नाटों ने खूब पढ़ा है
मेरे अनकहे शब्दों को
और ठंडी चुभती सर्द हवाओं ने
महसूस करा है ....
मेरे शब्दों के एहसास को .....
बहुत कुछ कहता हूँ
दिन भर ....
तुमसे, सबसे
पर सच कहूँ तो
आज तक
मैं, सिर्फ निःशब्द हूँ .....
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत कुछ कहता हूँ
दिन भर ....
तुमसे, सबसे
पर सच कहूँ तो
आज तक
मैं, सिर्फ निःशब्द हूँ .....
आदरणीय आमोद जी आप तो छुपे रुस्तम हो ....
सुन्दर
आ0 अरुण कुमार निगम जी धन्यवाद ये बताने के लिए मे कोशिश करता हूँ.....
आ0 जितेंद्र गीत जी, आ0 मीना पाठक जी, आ0 शिज्ज शकर जी, आ0 मुकर्जी जी बहुत बहुत आभार उत्साहवर्द्धन के लिए....
बहुत कुछ कहता हूँ
दिन भर ....
तुमसे, सबसे
पर सच कहूँ तो
आज तक
मैं, सिर्फ निःशब्द हूँ .....
सच ! कभी कभी बिन कहे ही सब कुछ बयां हो जाता है , बहुत सुंदर बधाई स्वीकारें आदरणीय आमोद जी
बहुत कुछ कहता हूँ
दिन भर ....
तुमसे, सबसे
पर सच कहूँ तो
आज तक
मैं, सिर्फ निःशब्द हूँ .............बहुत सुन्दर .. बधाई आप को | सादर
*पुनर्विचारणीय
आदरणीय आमोद जी, सुन्दर रचना के लिए बधाई. कुछ पंक्तियाँ व्याकरण की दृष्टि से पुनर्विचारानीय हैं, कृपया देख लीजिएगा.
आदरणीय आमोद जी बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति है, वाकई कभी कभी निःशब्द होना ही कई बातें कह देता है इस खूबसूरत रचना के लिये बधाई स्वीकार करें
बहुत सुंदर रचना.हार्दिक बधाई.अमोद जी.सादर
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