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भाई रविप्रकाशजी, आपसे हार्दिक रूप से अपनी भावना ज़ाहिर करते हुए स्पष्ट करता हूँ कि प्रस्तुत ग़ज़ल का काफ़िया एकदम दुरुस्त है. वैसे यह कहना भी अब या कभी कोई अर्थ नहीं रखता है. लेकिन मेरी टिप्पणी ऐसा ही कुछ कहती दीख रही है.
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह टिप्पणी किसी और के पोस्ट के लिए थी. लेकिन शायद मेरे मोनीटर पर कई पेज के एक साथ खुले होने के कारण आपके पोस्ट पर चस्पां हो गयी.
अनजाने ही सही, आपकी शान में हुई इस गुस्ताख़ी के लिए मैं आपसे बिना शर्त क्षमाप्रार्थी हूँ.
यह अवश्य है, कि मेरी इस भूल पर ध्यान किसी ने न दिलाया, न ही आपने दिलाया.
इसके लिए दुख भी है.
शुभ-शुभ
शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरो मुबारकबार क़ुबूल करें
ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,
मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।
वाह क्या कहने
आख़िरी शेर में तक को ११ वजन पर बाँधा गया है इस पर फिर से गौर फरमाएं
सुन्दर ग़ज़ल भाई रवि जी। .... हार्दिक बधाई आपको
काफ़ियाबन्दी फिर से करें, रवि भाई.
हैं रवायतें ये नईं-नईं न तुझे ख़बर,न मुझे पता,
तू क़दम-क़दम पे वफ़ा करे,मैं क़दम-क़दम पे ख़ता करूँ।.............behatreen .....................bahut hi umda
उम्दा गज़ल कही आ. रवि प्रकाश जी बधाई आपको .
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