For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

ग़ज़ल
बह्र-।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ ।।ऽ।ऽ
..
कभी मंज़िलों से शिकायतें,कभी रास्तों से गिला करूँ,
कहीं बदहवास चला चलूँ,कहीं बेसबब ही रुका करूँ।
..
ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,
मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।
..
ये चिराग़ तेरी निगाह के यूँ ही रोशनी दें डगर-डगर,
ये सफ़र मेरा है तेरी नज़र यही नक़्शे-पा से लिखा करूँ।
..
तेरी आरज़ू मेरा हौंसला,तेरी जुस्तजू मेरी शायरी,
तू हो दूर या मेरे रूबरू तुझे हर्फ़-हर्फ़ पढ़ा करूँ।
..
हैं रवायतें ये नईं-नईं न तुझे ख़बर,न मुझे पता,
तू क़दम-क़दम पे वफ़ा करे,मैं क़दम-क़दम पे ख़ता करूँ।
..
जहाँ एक डाली गुलाब की रहे पतझरों में तनी हुई,
मुझे उस गली तक ले चलो यही रहबरों से कहा करूँ।
..
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-10.01.2014

Views: 664

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prakash on January 25, 2014 at 9:53am
कोई बात नहीं गुरुवर, ऐसी त्रुटियाँ हो जाया करती हैं। हाँलाकि इस स्पष्टता से मन को सुकून अवश्य मिला है।आशीर्वाद बनाए रखें॥

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 24, 2014 at 10:26pm

भाई रविप्रकाशजी, आपसे हार्दिक रूप से अपनी भावना ज़ाहिर करते हुए स्पष्ट करता हूँ कि प्रस्तुत ग़ज़ल का काफ़िया एकदम दुरुस्त है. वैसे यह कहना भी अब या कभी कोई अर्थ नहीं रखता है. लेकिन मेरी टिप्पणी ऐसा ही कुछ कहती दीख रही है.

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि यह टिप्पणी किसी और के पोस्ट के लिए थी. लेकिन शायद मेरे मोनीटर पर कई पेज के एक साथ खुले होने के कारण आपके पोस्ट पर चस्पां हो गयी.

अनजाने ही सही, आपकी शान में हुई इस गुस्ताख़ी के लिए मैं आपसे बिना शर्त क्षमाप्रार्थी हूँ.
यह अवश्य है, कि मेरी इस भूल पर ध्यान किसी ने न दिलाया, न ही आपने दिलाया.

इसके लिए दुख भी है.
शुभ-शुभ

Comment by Ravi Prakash on January 20, 2014 at 8:03pm
आ॰ वीनस जी, इतना स्नेह और आशीर्वाद देने के लिए कोटिश: धन्यवाद । कृपया मार्गदर्शन करते रहें।
Comment by वीनस केसरी on January 20, 2014 at 3:02am

शानदार ग़ज़ल के लिए ढेरो मुबारकबार क़ुबूल करें

ये दिनों-दिनों की उदासियाँ,ये तमाम रात का जागना,
मुझे इस क़दर भी न याद आ कि मैं भूलने की दुआ करूँ।
वाह क्या कहने

आख़िरी शेर में तक को ११ वजन पर बाँधा गया है इस पर फिर से गौर फरमाएं

Comment by Ravi Prakash on January 15, 2014 at 11:20pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद आ॰ विजय मिश्र जी एवं रामशिरोमणि जी। आशीर्वाद बनाए रखें॥
Comment by ram shiromani pathak on January 15, 2014 at 6:11pm

सुन्दर ग़ज़ल भाई रवि जी। .... हार्दिक बधाई आपको

Comment by विजय मिश्र on January 15, 2014 at 4:37pm
"जहाँ एक डाली गुलाब की रहे पतझरों में तनी हुई,
मुझे उस गली तक ले चलो यही रहबरों से कहा करूँ। - उम्दा शे'र ,पूरी गजल में वही जानी-पहचानी नफासत है |खूबसूरत ,बधाई |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 15, 2014 at 1:23am

काफ़ियाबन्दी फिर से करें, रवि भाई. 

Comment by ajay sharma on January 14, 2014 at 11:07pm

हैं रवायतें ये नईं-नईं न तुझे ख़बर,न मुझे पता,
तू क़दम-क़दम पे वफ़ा करे,मैं क़दम-क़दम पे ख़ता करूँ।.............behatreen .....................bahut hi umda 

Comment by MAHIMA SHREE on January 14, 2014 at 10:18pm

उम्दा गज़ल कही आ. रवि प्रकाश जी बधाई आपको .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
50 minutes ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Jul 2
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Jul 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service