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ग़ज़ल - छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या

छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या

ख़ुद से कर देगा बदगुमान भी क्या 
कोई ठहरेगा मेह्रबान भी क्या

है मुकद्दर में कुछ उड़ान भी क्या
इस ज़मीं पर है आसमान भी क्या

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है

काट ली जायेगी ज़बान भी क्या

धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को

लूट लेंगे ये सायबान भी क्या

इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या

अब के दावा जो है मुहब्बत का
झूठ ठहरेगा ये बयान भी क्या

मेरी नज़रें तो पर्वतों पर हैं
मुझको ललचायेंगी ढलान भी क्या

- वीनस केसरी
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by नादिर ख़ान on January 20, 2014 at 10:27pm

छीन लेगा मेरा .गुमान भी क्या
इल्म लेगा ये इम्तेहान भी क्या

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है
काट ली जायेगी ज़बान भी क्या

धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को
लूट लेंगे ये सायबान भी क्या

इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या

आदरणीय वीनस जी उम्दा गज़ल, एक से बढ़कर एक शेर, बार बार पढ़ने को जी चाहता है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 10:16pm

आदरणीय वीनस भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , वाह ! सभी शे  र  बहुत सुन्दर हुये है , किसी एक को चुनना मुश्किल है !! आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 20, 2014 at 8:37pm

धूप से लुट चुके मुसाफ़िर को
लूट लेंगे ये सायबान भी क्या
वाह क्या कहने!
खूबसूरत गजल के लिये बधार्इ

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 20, 2014 at 7:08pm
इस क़दर जीतने की बेचैनी
दाँव पर लग चुकी है जान भी क्या
achha hai sir ji badhai
Comment by सूबे सिंह सुजान on January 20, 2014 at 4:40pm

वाह भाई वीनस बहुत सुन्दर शेर कहे हैं।  

मेरा लहजा ज़रा सा तल्ख़ जो है

काट ली जायेगी ज़बान भी क्या...........  

नये तरह का शेर खूब भाया है

Comment by coontee mukerji on January 20, 2014 at 3:14pm

बहुत दिनों बाद आज ओबीओ के आकाश में तारों संग चाँद भी निकला ....आप के गज़लों की तारीफ़ में..,वीनस जी..सादर.

कृपया ध्यान दे...

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