भ्रष्ट मंत्र है भ्रष्ट तंत्र है
इसे बदलना होगा
अब सत्ता के गलियारों में
हमें पहुंचना होगा
वीरों ने हुंकार भरी है
दुश्मन सभी दहल जाओ
भ्रष्टाचारी रिश्वतखोरों
तुम भी सुनो संभल जाओ
अपनी नीयत साफ़ करो अब
नहीं तो मरना होगा
वन्देमातरम के जयकारे
जनगणमन का गान करें
जहाँ कहीं भी हो आवश्यक
हम अपना बलिदान करें
देश के इन गद्दारों से अब
हमें निपटना होगा
बहुत हो चुकी अब मनमानी
बहुत हो गया भ्रष्टाचार
उठें बढ़ें हम कसें कमर को
देश को है अब यही पुकार
अपने अधिकारों को उनसे
हमें झपटना होगा
अब तक जिसका खून न उबला
खून नहीं वो पानी है
कदम मिलाकर जो चल देगा
सच्चा हिन्दुस्तानी है
बाकी लोगों को अपना
अस्तित्व परखना होगा
संजु शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित
*यह गीत मैंने अन्ना आन्दोलन के समय लिखा था. आप सभी से मार्गदर्शन अपेक्षित है
Comment
आदरणीय शिज्जू जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय अरुण जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय नीरज जी आपका हार्दिक आभार
बहुत खूब ....बधाई आपको ..
गीत का विषय आपने सामयिक चुना है जो आज की ज़रूरत भी है, शिल्प की बात हो चुकी हैl
इस खूबसूरत गीत के लिये बधाई स्वीकार करें
आदरणीया संजू जी देश को समर्पित ओजपूर्ण गीत रचा है आपने कहीं कहीं प्रवाह बाधित हो रहा है खैर इस गीत के जरिये आपने ललकार लगाई है. आपको बधाई.
बहुत अच्छे ..
आदरणीया कल्पना दीदी प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद,प्रस्तुत रचना नवगीत नहीं बल्कि गीत है यह बताकर आपने मेरा भ्रम दूर कर दिया,इसके लिए आपका आभार व्यक्त करती हूँ . मात्राएँ संतुलित नहीं हैं ,जिसे मैं संतुलित करने का प्रयास करुँगी .महत्वपूर्ण मार्गदर्शन हेतु पुनः धन्यवाद .
आदरणीय श्याम जी रचना अनुमोदन के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार
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