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छलक छलक जाती है अँखियाँ -(घनाक्षरी छंद ) !!

छंद पर मेरा प्रथम प्रयास 

छलक छलक जाती अँखियाँ हैं प्रभुश्याम 

आपके दरस को उतानी हुई जाती हूँ ।

ब्रज के कन्हाइ का मुझे भरोसा मिल गया ,

खुशी न समानी मन  मानी हुई जाती हूँ ।

भक्ति रस मे ही डूबी श्याम मै पोर पोर 

भावना मे डूबी पानी पानी हुई जाती हूँ ।

सांवरे का जादू ऐसा चढ़ा तन मन पर ,

राधिका  सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ । 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2014 at 9:04pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी , भक्ति रस मे डूबी आपकी छंद रचना के लिये हार्दिक बधाई ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on January 22, 2014 at 7:09pm

बहुत अच्छी रचना है आदरणीया अन्नपूर्णा जी, बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by Ashish Srivastava on January 22, 2014 at 4:12pm

वाह बहुत सुद्नर रचना 

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 22, 2014 at 3:20pm

वाह आदरणीया अन्नपूर्णा जी कन्हैया के प्रेम में डूबकर बेहद शानदार घनाक्षरी रचा है आपने अंतिम चार पंक्तियाँ तो वाह वाह कमाल की बन पड़ी हैं दिल खुश हो गया पढ़कर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by Shyam Narain Verma on January 22, 2014 at 11:01am
बहुत सुंदर भाव, बधाई ....
Comment by नादिर ख़ान on January 21, 2014 at 11:28pm

राधिका  सी प्रेम की दीवानी हुई जाती हूँ । 

वाह-वाह आदरणीया अन्नपूर्णा जी सुंदर भाव  ....

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