मात्रिक छंद
जो रस्मों को मन से माने, पावन होती प्रीत वही तो!
जीवन भर जो साथ निभाए, सच्चा होता मीत वही तो!
रूढ़ पुरानी परम्पराएँ, मानें हम, है नहीं ज़रूरी।
जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!
मंदिर-मंदिर चढ़े चढ़ावा, भरे हुओं की भरती झोली।
जो भूखों की भरे झोलियाँ, होता कर्म पुनीत वही तो!
ऐसा कोई हुआ न हाकिम, जो जग में हर बाज़ी जीता,
बाद हार के जो हासिल हो, सुखदाई है जीत वही तो!
भाव बिना है कविता फीकी, बिना सुरीले बोल, तराने।
जो तन-मन को करे तरंगित मधुरिम है संगीत वही तो!
यूँ तो मिलती नेक नसीहत, भूलें जो बीता दुखदाई,
संग जिये पर जिसके पल-पल, होता याद अतीत वही तो!
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
हमेशा की तरह बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया।
आपको बहुतबधाई इस सार्थक गज़ल हेतु।
शुभ शुभ
आदरणीय कल्पना दी संदेशात्मक गजल के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीया कल्पना जी , सुन्दर सन्देश साझा करती आपकी गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
आदरणीया कल्पना जी बहुत अच्छी संदेश परक ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल पर
रूढ़ पुरानी परम्पराएँ, मानें हम, है नहीं ज़रूरी।
जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो! बहुत सुन्दर रचना आदणीया जी बधाई आप को
आदरणीया कल्पना जी वाह प्रत्येक अशआर ताजगी भरे हुए हैं बेहद शानदार संदेशप्रद ग़ज़ल कही है आपने दिली मुबारकबाद कुबूल फरमाएं.
सुंदर भाव से संजोयी रचना पर बधाई स्वीकारें ..... |
जो समाज को नई दिशा दे, प्रचलित होती रीत वही तो!
सदैव की भांति साथक और सुन्दर संदेशयुक्त आदरणीया कल्पना मैम
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