नैतिकता के पतन से, फैला कंस प्रभाव॥
मात- पिता सम्मान नहि, नस नस में दुर्भाव॥
पश्चिम संस्कृति जी रहे, हम भूले निज मान।
कहते हम संतान कपि, जबकि हैं हनुमान॥
निज गौरव को भूलकर, बनते मार्डन लोग।
ये भी क्या मार्डन हुए, पाल रहे बस रोग॥
अपने घर में त्यक्त है, वैदिक ज्ञान महान।
महा मूढ़ मतिमंद हम, करते अन्य बखान॥
लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥
मौलिक व अप्रकाशित
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आदरणीय त्रिपाठी भाई बेहद सुन्दर दोहावली रची है आपने एक एक दोहा सार्थक और सारगर्भित हैं बहुत बहुत बधाई आपको
बहुत सुंदर दोहे आ0 विधयेशवरी जी ।
आदरणीय vindheshwari जी संस्कृति की चिंता करते सुन्दर दोहे ,हार्दिक बधाई
आदरणीय विन्ध्येश्वरी भी , भारतीय संकृति का मान बढ़ाते आपके दोहों के लिये बहुत बहुत बधाइयाँ ॥
सुन्दर , सार्थक और सारगर्भित दोहे रचे है | हार्दिक बधाई श्री विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी
आधुनिकता के कुछ साइड इफेक्ट को आपने बड़ी खूबसूरती से दोहों में ढाला है आदरणीय विंध्येश्वरी त्रिपाठी जी
लौटें अपने मूल को, जो है सबका मूल।
पोषित होता विश्व है, सार बात मत भूल॥
बहुत ही सार्थक संदेश दिया है आपने आपको बहुत बहुत बधाई इस दोहावली के लिये
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