For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पर्वत की तुंग
शिराओं से
बहती है टकराती,
शूलों से शिलाओं से,
तीव्र वेग से अवतरित होती,
मनुज मिलन की
उत्कंठा से,
ज्यों चला वाण
धनुर्धर की
तनी हुई प्रत्यंचा से.
आकर मैदानों में
शील करती धारण
ज्यों व्याहता करती हो
मर्यादा का पालन.
जीवन देने की चाह
अथाह.
प्यास बुझाती
बढती राह.
शीतल, स्वच्छ ,
निर्मल जल
बढ़ती जाती
करती कल कल
उतरती नदी
भूतल समतल
लेकर ध्येय जीवनदायी
अमिय भरे
अपने ह्रदय में
लगती कितनी सुखदायी.
यहीं होता नदी का
सामना,
मनुजों की
कुत्सित अभिलाषा से
चिर अतृप्त
निज स्वार्थ पूरित
अंतहीन, आसुरी पिपासा से
नदी का अस्तित्व होता
तार तार
हर गांव, हर नगर
हर बार, बार बार.
करके अमृत का हरण,
करते गरल वमन,
भर देते इसमें, असुर
समुद्र मंथन से मिले
सारे जहर
कोई नीलकंठ नहीं,
कोई तारण हार नहीं,
रोती , तड़पती ,
कभी गुस्साती , फुफकारती
नदी,
अपने मृत्यु शैय्या पर लेटे लेटे
मिलती अपने चिर प्रतीक्षित प्रेमी से,
उसका करता स्वागत, सागर
अपनी बाहें फैलाकर.
सागर एक सच्चा प्रेमी है,
शामिल कर लेता है उसका अस्तित्व
स्वीकारता है उसे
अपने भीतर,
सम्पूर्णता में
उसकी सभी सड़ांध के बाबजूद.
प्रेम में अभीष्ट है समपर्ण
अपनी पूर्णता के साथ.
तिरोहित हो जाती नदी की सारी व्यथा.
सागर की विशालता में हो जाती गौण,
विस्मृत कर देती अपनी दु: कथा.
नदी के ह्रदय में पुनः उठती हुक
जीवन देने की,
पुत्र मिलन की इच्छा
हो जाती बलवती
वह पुनः उठती
बनकर मेघ
पर्वतों में बरसती
पुनः बनती नदी
नदी माँ है.
माता कुमाता नहीं होती.
... नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 973

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on January 31, 2014 at 10:59pm

नदी के जीवन चक्र का सुंदर शब्दों में जीवंत वर्णन... बहुत अच्छी कविता के लिए बधाई आपको/सादर 

Comment by coontee mukerji on January 31, 2014 at 9:12pm

एक आदर्श रचना....कहते हैं कि बहते पानी में दोष नहीं होत......वैसे ही माता  कभी कुमाता नहीं होती.

Comment by Neeraj Neer on January 31, 2014 at 9:19am

आदरणीया वंदना जी सादर धन्यवाद .

Comment by Neeraj Neer on January 31, 2014 at 9:18am

आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा आपका हार्दिक आभार ..

Comment by Neeraj Neer on January 31, 2014 at 9:17am

आपका आभार आदरणीय बृजेश जी .. अपूर्णता की ओर ध्यान दिलाने का शुक्रिया और इस पोस्ट पर आने का भी :) .. 

स्वीकारता है उसे 
अपने भीतर, 
सम्पूर्णता में 

उसकी सभी सड़ांध के बाबजूद.............. इन पंक्तियों से मेरा सन्दर्भ जिस स्थिति से है , वह मैं बताने की कोशिश करता हूँ. ... जैसे एक नव विवाहिता स्त्री है , बहुत सुन्दर, बहुत चंचल .... उसका पति जो उसका प्रेमी भी है उससे बहुत प्यार करता है , वह स्त्री एक दिन अपने मायके जाती है , वहां उसके साथ कुछ अनहोनी होती है , दुराचार होता है , अब उसका पति/प्रेमी उसे स्वीकारने से इनकार कर देता है , जबकि वह स्त्री आज भी उस पुरुष से वैसा ही प्रेम करती है , उसकी भावनाएं उतनी ही पवित्र है , लेकिन उसका पति उसे अपनाने से इनकार करता है . ऐसे में वह एक सच्चा प्रेमी नहीं हुआ . अगर वह सच्चा प्रेमी होता तो उसे सस्नेह स्वीकार लेता और उसके दुःख को कम करने की कोशिश करता है .. :)

Comment by vandana on January 31, 2014 at 6:42am

नदी की चिर परिचित यात्रा को आपके शब्दों ने एक नए स्वरूप  में अभिव्यक्त किया है आदरणीय नीरज जी बहुत२ बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 30, 2014 at 10:19pm

पाठक, नदी के साथ बहते बहते सागर तक फिर और आगे पूरा हाईड्रौलोजिकल साईकल भी घूम आये इस अभिव्यक्ति में...

कविता के कुछ कुछ अंश बेहद प्रभावी हुए हैं ...जैसे 

यहीं होता नदी का 
सामना,
मनुजों की 
कुत्सित अभिलाषा से 
चिर अतृप्त 
निज स्वार्थ पूरित 
अंतहीन, आसुरी पिपासा से 

या फिर ..

 मृत्यु शैय्या पर लेटे लेटे 
मिलती अपने चिर प्रतीक्षित प्रेमी से, 
उसका करता स्वागत, सागर 
अपनी बाहें फैलाकर.

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर 

Comment by Neeraj Neer on January 30, 2014 at 2:15pm

आ. मीना पाठक जी सादर धन्यवाद .

Comment by Meena Pathak on January 30, 2014 at 12:30pm

बहोत बहोत सुन्दर ..... सादर बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on January 30, 2014 at 12:28pm

//स्वीकारता है उसे 
अपने भीतर, 
सम्पूर्णता में 

उसकी सभी सड़ांध के बाबजूद//............. जैसा कि रचना की शुरूआती पंक्तियों में आपने भी इशारा किया है, नदी अपने-आप में सड़ांध उत्पन्न नहीं करती, जबकि ये पंक्तियाँ यही सन्देश देती सी लगती हैं.

अच्छी रचना है. इसे और कसा जा सकता था.

बहरहाल, इस अभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service