बह्र : १२१२ ११२२ १२१२ २२
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सभी से आँख चुराकर सम्हाल रक्खा है
नयन में प्यार का गौहर सम्हाल रक्खा है
कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे
वो जिसके हाथ का पत्थर सम्हाल रक्खा है
तेरे चमन से न जाए बहार इस खातिर
हृदय में आज भी पतझर सम्हाल रक्खा है
चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए
ये सोच जिस्म का बंजर सम्हाल रक्खा है
तेरे नयन के समंदर में हैं भँवर, तूफाँ
किसी के प्यार ने लंगर सम्हाल रक्खा है
तुझे पसंद जो आया सनम वही मैंने
ग़ज़ल में आज भी तेवर सम्हाल रक्खा है
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(मौलिक एवं प्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद शिज्जु शकूर जी
बहुत बहुत शुक्रिया रमेश कुमार चौहान जी
बहुत बहुत धन्यवाद Kewal Prasad जी
बहुत खूब! क्या बात है! आपको बहुत-बहुत बधाई!
बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी
चमन मेरा न बसा, घर किसी का बस जाए
ये सोच जिस्म का बंजर सम्हाल रक्खा है
कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे
वो जिसके हाथ का पत्थर सम्हाल रक्खा है
क्या कहने बहुत खूब....
बहुत खूब धर्मेंद्र जी...सभी शेर उम्दा है...
सुन्दर रचना
भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्रदेश
क्या बात है ..... बहुत खूब ... बधाई आप को
कहेगा आज भी पागल व बुतपरस्त मुझे
वो जिसके हाथ का पत्थर सम्हाल रक्खा है
क्या कहने बहुत खूब .. सभी शेर बहुत उम्दा है . बधाई ..
बहुत खूब आदरणीय धर्मेंद्र जी ....
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई बहुत खूब ग़ज़ल कही, हर शेर दिल तक असर कर गया हार्दिक बधाई .
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