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लफ़्ज़ कब जज़्बात को पूरे पड़े ? ( ग़ज़ल ) गिरिराज भंडारी

2122     2122        212 ( पूरा ) 

 

इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख

बाग  मे  पानी के  फौव्वारे भी देख

 

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 

तू अमा में चाँद  खातिर , ज़िद  न कर        

आ कभी आकाश में तारे भी देख

सिर्फ  भारी रह सकूँ , ये सोच  मत  

कैसे उड़ते, हलके  गुब्बारे  भी  देख  

 

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 

जीत  से  कोई  नही  सीखा   कभी

ज़िन्दगी से हम कहाँ  हारे ,भी देख

 

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख  

 

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 5, 2014 at 7:27pm

आदरणीय सौरभ भाई , आपको ग़ज़ल पसन्द आई , बहुत खुशी हुई !! आपका हृदय से आभारी हूँ ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 1:02am

मैं कोई एक शेर उद्धृत नहीं कर पा रहा हूँ.  इस क़ामयाब ग़ज़ल पर दिल से दाद दे रहा हूँ.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:13pm

आदरणीया प्राची जी , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 24, 2014 at 9:12pm

आदरणीय राम शिरोमणी भाई , गज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 24, 2014 at 8:47pm

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

लफ़्ज़ कब  जज़्बात  को  पूरे  पड़े ?

भीगती  आँखों  में  अंगारे भी देख

बहुत सुन्दर गाल हुई है , ये दो शेर ख़ास पसंद आये 

हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल पर 

Comment by ram shiromani pathak on February 22, 2014 at 4:48pm

वाह वाह आदरणीय गिरिराज जी

क्या खूब कहा आपने//////////

सिर्फ  सूखे  तू शज़र   देखा  न  कर

हो  रहे  पत्ते   हरे   सारे  भी   देख  

 

तू अमा में चाँद  खातिर , ज़िद  न कर        

आ कभी आकाश में तारे भी देख

सिर्फ  भारी रह सकूँ , ये सोच  मत  

कैसे उड़ते, हलके  गुब्बारे  भी  देख  

 

चन्द  हँसती  सूरतों  से  खुश न हो  

देख  आँसू , दर्द  के  मारे  भी  देख

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 10:05pm

आदरणीय बृजेश भाई , य्त्साह वर्धन के लिये आपका दिली शुक्रिया ॥

Comment by बृजेश नीरज on February 20, 2014 at 7:04pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 6:19pm

आदरणीया शशि जी , ग़ज़ल की तारीफ के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 6:18pm

आदरणीय नादिर खान भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

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