2122 2122 212 ( पूरा )
इस फ़िज़ा के शोख नज़्ज़ारे भी देख
बाग मे पानी के फौव्वारे भी देख
सिर्फ सूखे तू शज़र देखा न कर
हो रहे पत्ते हरे सारे भी देख
तू अमा में चाँद खातिर , ज़िद न कर
आ कभी आकाश में तारे भी देख
सिर्फ भारी रह सकूँ , ये सोच मत
कैसे उड़ते, हलके गुब्बारे भी देख
चन्द हँसती सूरतों से खुश न हो
देख आँसू , दर्द के मारे भी देख
जीत से कोई नही सीखा कभी
ज़िन्दगी से हम कहाँ हारे ,भी देख
लफ़्ज़ कब जज़्बात को पूरे पड़े ?
भीगती आँखों में अंगारे भी देख
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय गिरिराज सर बहुत बहुत बधाई आपको
सिर्फ भारी रह सकूँ , ये सोच मत
कैसे उड़ते, हलके गुब्बारे भी देख
चन्द हँसती सूरतों से खुश न हो
देख आँसू , दर्द के मारे भी देख.............बहुत खूब आदरणीय!
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