1222/1222/1222/1222
अरे नादान ये मय है जिगर को ये जला ही दे
मेरे इस दर्दे दिल के वास्ते कोई दवा ही दे
कभी जब खींच ले जाये समंदर साथ अपने तो
गुज़रती मौज कश्ती को किनारे पर लगा ही दे
तेरी आँखों में मेरे दर्द की तासीर है शायद (तासीर= असर)
उदासी भी तेरी इस बात की पैहम गवाही दे (पैहम= लगातार)
इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही
तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे
बचूँगा कब तलक तेरी निगाहों से कहीं छुपकर
चलाना है तुझे जो तीर शब्दों के चला ही दे
यही दिन-रात उलझन है सताये डर मेरा मुझको
छुपाता हूँ ज़माने से खता सबको बता ही दे
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
वाह वाह वाह
बहुत सुन्दर गजल हैआदरणीय शकूर जी हार्दिक बधाई
इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही
तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे
बचूँगा कब तलक तेरी निगाहों से कहीं छुपकर
चलाना है तुझे जो तीर शब्दों के चला ही दे
वाह -
इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही
तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे...........वाह! क्या बात है
बहुत शानदार गजल आदरणीय शिज्जू जी, बधाई स्वीकारें
भाई सारथी जी एवम चन्द्रशेखर जी आप दोनो का बहुत बहुत धन्यवाद
इरादों को किया मजबूत तेरे पत्थरों ने ही
तेरा हर वार मेरा हौसला आखिर बढ़ा ही दे....वाह जी साहब
बचूँगा कब तलक तेरी निगाहों से कहीं छुपकर
चलाना है तुझे जो तीर शब्दों के चला ही दे...क्या बात है ...वाह !
आदरणीय गिरिराज सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया
भाई रमेश जी आपका आभार
आदरणीय शिज्जू भाई , खूब सूरत गज़ल के लिये दिली मुबारक बाद स्वीकार करें ॥ ढेरों दाद ॥
बचूँगा कब तलक तेरी निगाहों से कहीं छुपकर
चलाना है तुझे जो तीर शब्दों के चला ही दे
यही दिन-रात उलझन है सताये डर मेरा मुझको
छुपाता हूँ ज़माने से खता सबको बता ही दे ----------- लाजवाब !! आपको ढेरों दाद ॥
आदरणीय शकूर भैयाजी, खूबसूरत गजल कही है आपने बधाई बधाई
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