१. लगे अंग तो तन महकाए,
जी भर देखूं जी में आये,
कभी कभी पर चुभाये शूल,
का सखी साजन ? ना सखी फूल.
२. गोदी में सर रख कर सोऊँ,
मीठे मीठे ख्वाब में खोऊँ,
अंक में लूँ, लगाऊं छतिया.
का सखी साजन? ना सखी तकिया .
३ उससे डर, हर कोई भागे,
बार बार वह लिख कर माँगे.
कहे देकर फिर करो रिलैक्स.
का सखी साजन? ना सखी टैक्स ..
४. गाँठ खुले तो इत उत डोले,
जिधर हवा उधर ही हो होले,
कोई नियत ना कोई ठांव,
का सखी साजन ? ना सखी नाँव.
५. गोद बिठा कर जगत घुमाये ,
तरह तरह के दृश्य दिखाए,
बिना उर्जा के रहे बेकार,
का सखी साजन ? ना सखी कार.
नीरज कुमार नीर
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
चौथी मुकरी की तीसरी पंक्ति को यूँ पढ़ें :
जिधर हवा हो उधर ही होले
edit करने में मैंने गड़बड़ कर दी .
आपका हार्दिक आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह साहिबा . आपको कह मुकरियां अच्छी लगी मेरा प्रयास सार्थक हुआ . चौथी कह मुकरी में शब्द आगे पीछे थे उन्हें मैंने सुधार लिया है .. तीसरी कह मुकरी को कुछ ऐसा किया है
उससे डर, हर कोई भागे,
वो मेरे पीछे, मैं आगे
कहे देकर फिर करो रिलैक्स..
का सखी साजन? ना सखी टैक्स..
पांचवीं कह मुकरी को निम्नवत कर दिया :
गोद बिठा कर जगत घुमाये ,
तरह तरह के दृश्य दिखाए,
बिना शक्ति के रहे बेकार,
का सखी साजन ? ना सखी कार
..... आपका सादर आभार ..
आपकी गंभीर अतुकांत रचनाओं को देखने के बाद आपको कहमुकरी जैसी चुलबुली विधा पर कलम आजमाईश करते देखना बहुत सुखद लग रहा है
कार नाँव तकिया टैक्स और फूल को आधार बना कहमुकरियों पर सुन्दर प्रयास हुआ है, मेरे हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित हैं
तीसरी कहमुकरी में भागे और माँगे के तुक मिलान के साथ ही तीसरी पंक्ति की मात्रिकता को एक बार पुनः देखें
चौथी कह्मुकरी की दूसरी पंक्ति में भी शब्दों को कुछ आगेपीछे किये जाने की आवश्यकता लगी
पांचवी कह्मुकरी की तीसरी पंक्ति में भी मात्रा बढ़ रही है, देख लीजियेगा
सार्थक प्रयास बना रहे, यही शुभकामनाएं हैं
सादर.
आपका हार्दिक आभार आ. माहेश्वरी कनेरी जी ...
aapka haardik aabhar aadarniya Laxman Prasad ladiwala ji.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई
हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे साहब ..
अति सुन्दर और मनोहारी प्रस्तुति। बधाई।
हार्दिक आभार आ. अनिल कुमार अलीन जी ..
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