For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैलाश पर अशांति

कैलाश पर शिव लोक में

था सर्वत्र आनंद.

चारो ओर खुश हाली थी

सब प्यार में निमग्न.

खाना पीना था प्रचुर

वसन वासन सब भरपूर.

जंगल था, लताएँ थी

खूब होती थी बरसात,

स्वच्छ वायुमंडल ,

खुली हुई रात.

धीरे धीरे नागरिकों ने

काट डाले जंगल

बांध कर नदियों को

किया खूब अमंगल.

एक बार पड़ गया

बहुत घनघोर अकाल.

चारो ओर मचा

विभत्स हाहाकार.

नाच उठा दिन सबेरे

विकराल काल कराल.

तिलमिलाने लगे सब भूख से

नोच खाने को तैयार.

चंद्रचूड़ का नाग झपटा

गणपति के मूषक पर,

कार्तिकेय का सारंग

टूट पड़ा नाग पर.

सब भीड़ गए एक दुसरे से गण.

फ़ैल गयी अराजकता सर्वत्र

बेचैन हुआ उमा का मन.

जाकर बोली शिव से

प्रभो! शम्भू , दीनानाथ.

ऑंखें खोलिए ,

तोड़िए समाधि , देखिये

फैली हुई है कैलाश में

यह कैसी व्याधि.

कोई लोक लाज नहीं

नहीं बचा संस्कार..

एक टुकड़ा रोटी हेतू

रहे एक दूजे को मार .

आप ही कुछ कीजिये

इसका समाधान.

मुस्काये शिव जी

आँखें खोली, कहा,

देवी क्यों हो परेशान.

भूख प्रकृति का

अटल सत्य है.

भूख मिटाना प्राणी का

प्रथम कृत्य है ..

भूख से ही चल रहा

जगत व्यापार..

खाने की जुगत

है प्राणी का स्वाभाविक व्यवहार.

जहाँ हो भूख

वहां शांति नहीं होती

जठराग्नि की दाह

होती है बड़ी प्रबल.

बदल देती है सभ्यताएं.

हिला देती है

सत्ता की चूलें

सबल हो जाता है वह भी

जो होता है निर्बल ..

….. Neeraj Kumar Neer

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 608

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Neeraj Neer on March 26, 2014 at 8:39pm

आपका हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी .. आप ऐसा ना सोचें कि आपकी बात मुझे बुरी लग सकती है , जब आपकी प्रशंसा पाकर गर्व से फूल जाता हूँ, तब आपकी हलकी झिड़की भला बुरी कैसे लग सकती है . आपका टिप्पणी का सदा इंतज़ार रहता है .. हाँ, हिज्जे दोष मैं नहीं समझ पाया , या मैं ढूंढ नहीं पाया .. :) . लेकिन कविता के प्रति आपकी समझ का मैं कायल हूँ .. OBO में मैं मनोहारी चलताऊ टिप्पणियों के लिए नहीं आता हूँ , बल्कि आप जैसे लोगों की नज़रों से कविता गुजरे इसलिए आता हूँ, मैं तो विद्यार्थी हूँ , पहली सीढ़ी पर खड़ा... मनोहारी टिप्पणियाँ मेरा आगे का मार्ग अवरूध कर देंगी ..मैं आप जैसे लोगों की दृष्टि की आंच में इसे पकाना चाहता हूँ . इसलिए निः संकोच तथ्यात्मक टिपण्णी करें , यह सोचते हुए कि किसी को आपकी टिप्पणी का इंतज़ार है .. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 11:41am

आपकी इस कविता से अभी गुजरना हो रहा है.
जो तथ्य पूरे जोर से सामने आया है उस पर एक समय से मैं कहता रहा हूँ, वह है संप्रेषणीयता और प्रयुक्त माध्यम के प्रति समुचित ध्यान न  देना.
रचनाकार अपनी सोच में सार्थक भावनाओं से लबालब भरे ही होते हैं. आपकी यह रचना भी इसका प्रमाण है. बहुत अच्छा तथ्य साझा करने का प्रयास हुआ है. लेकिन प्रस्तुति एकदम से चलताऊ है, भाई. हालत ये है कि हिज्जे दोष के कारण भान हो रहा है मानो हलवे में कंकड़ नहीं बल्कि हलवा ही कंकड़ में पड़ गया है. इतनी अच्छे विन्दु को थोड़ा सम्भालना था, भाई नीरज नीरजी.

एक बात, यदि मेरी बातें बुरी लगी हों, जैसी कि लगा करती हैं, तो आप कह दीजियेगा. या इशारा भर कर दीजियेगा. मैं अच्छे मनोहारी वाक्य भी लिख सकता हूँ. अब ऐसा ही लिखने की कोशिश कर रहा हूँ.
शुभेच्छाएँ.
 

Comment by Neeraj Neer on March 6, 2014 at 7:23pm

आपका आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब ..

Comment by Neeraj Neer on March 6, 2014 at 7:22pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब आपका हार्दिक आभार ...

Comment by Neeraj Neer on March 6, 2014 at 7:20pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका बहुत आभार व्यक्त करता हूँ ....

Comment by Neeraj Neer on March 6, 2014 at 7:19pm

आपका आभार आ. जितेन्द्र गीत जी . 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2014 at 6:20pm

आदरणीय नीरज नीर भाई , आपने जिन बातों को  रचना के माध्यम से उकेरा है ,हमारे ही जीवन से इत्तेफाक रखती हैं .इसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 6, 2014 at 5:40pm

आदरणीय नीरज नीर भाई , बहुत सही बात कही है आपने रचना के माध्यम से , भूख ही सब व्यवहार को नियंत्रित करती है , आम तौर पर ॥ आपको बहुत बहुत बधाई ॥

Comment by annapurna bajpai on March 6, 2014 at 4:13pm

वाह !! , निशब्द हूँ क्या बोलूँ । बहुत बधाई इस रचना हेतु । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 6, 2014 at 9:51am

भूख प्रकृति का

अटल सत्य है...........सच! भूख चाहे रोटी की हो या अन्य, इन्सान को अशांत चित्त कर देती है

बहुत सुंदर अनुपम रचना , हार्दिक बधाई आदरणीय नीरज जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
19 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service