मूक नहीं है वो लिखते जाना ही उसकी जात है ,
तम की स्याही से वो लिखती नित्य नव प्रभात है ।
उजियारा फैलाने को रोज नया सूरज वो लाती है ,
जो मूक हो जीते है उनकी जुबान वो बन जाती है ।
पढ़ लिख कर सम्मान की अलख वो जगाती है ,
झूठे हो चाहे जितने पर सच्चाई की धार लगाती है ।
अज्ञानता के घोर तमस को समूल उखाड़ भगाती है,
होती जिसके हाथ कलम ज्ञान भंडार लगाती है॰
पैनी कितनी भी हो तलवारें पर भीत नहीं ये खाती है,
परचम सच्चाई का नित्य नया लहराती है।
टेकते अँगूठों को मुड़ना ये बतलाती है,
अंगूठा टेको को अक्सर लिखना सिखलाती है ।
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति पर। हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर,
खुबसुरत व्याख्या
आ0 सरिता जी , आ0 माहेश्वरी कनेरी जी , आ0 कल्पना जी , आ0 कुशवाहा जी एवं जितेंद्र जी आप सबका हार्दिक आभार । आपको रचना पसंद आई मेरा सौभाग्य ।
कलम के महत्व को बहुत सुन्दरता से बयां करती रचना, बधाई आदरणीया अन्नपूर्णा जी
टेकते अँगूठों को मुड़ना ये बतलाती है,
अंगूठा टेको को अक्सर लिखना सिखलाती है ।
बधाई आदरणीया जी सादर
bahut sundar anju di bahut bahut badhai ........
कलम के की खुबसुरत व्याख्या की आप ने..इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई...
वाह कलम के गुणों की खुबसुरत व्याख्या की है आपने
आपका हार्दिक आभार आ0 मीना दी , आ0 श्याम नारायण जी ।
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई... |
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