For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सार ललित छंद (कल्पना रामानी)

छन्न पकैया, छन्न पकैया, दिन कैसे ये आए,

देख आधुनिक कविताई को, छंद,गीत मुरझाए।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, गर्दिश में हैं तारे,

रचना में कुछ भाव हो न हो, वाह, वाह के नारे।    

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, घटी काव्य की कीमत,

विद्वानों को वोट न मिलते, मूढ़ों को है बहुमत।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, भ्रमित हुआ मन लखकर,

सुंदरतम की छाप लगी है, हर कविता संग्रह पर।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, कविता किसे पढ़ाएँ,

पाठक भी अब यही सोचते, कुछ लिख, कवि कहलाएँ।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, रचें किसलिए कविता,

रचना चाहे ‘खास’ न छपती, छपते ‘खास’ रचयिता।

 

छन्न पकैया, छन्न पकैया, अब जो ‘तुलसी’ होते,

देख तपस्या भंग छंद की, सौ-सौ आँसू रोते।

मौलिक व अप्रकाशित  

Views: 804

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:25pm

आदरणीय शिज्जु जी, आपको यह रचना पसंद आई, यह मेरे लिए सुखकर है। आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:23pm

आदरणीया प्राची जी, आपकी टिप्पणी से कुछ कुछ संतोष हुआ, कि जो कुछ मैंने महसूस किया है उसमें कुछ तो सार है। रचना पर आपकी उपस्थिति संतोष प्रदान करती है।आपका मन से धन्यवाद  

Comment by कल्पना रामानी on March 25, 2014 at 10:21pm

प्रिय सरिता जी, संजु जी, रचना की सराहना द्वारा प्रोत्साहित करने के लिए आपका  हार्दिक धन्यवाद। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 24, 2014 at 11:07am

आ० कल्पना जी

काव्य संसार के कुछ आयामों को आपने जैसा देखा समझा वह छन्न पकिया के माध्यम से आपने सांझा किया.. आपका नजरिया जानना भला लगा

 

शुभकामनाएं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2014 at 11:10am

आदरणीया कल्पना जी आपकी यह रचना काफी सधी हुई है और आपने बहुत खूबसूरती से अपनी बात कही है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by Sarita Bhatia on March 13, 2014 at 11:08am

आदरणीय कल्पना दी हार्दिक बधाई सुन्दर प्रस्तुति पर 

Comment by sanju shabdita on March 13, 2014 at 10:54am

आ० कल्पना दी मुझे आपकी यह रचना बहुत ही रोचक ,सटीक एवं  मजेदार लगी ..यह उन लोगों के लिए भी सबक है जो बिना लिखे ही कवि या लेखक  बनना चाहते हैं .इस बेहतरीन रचना के लिए आपको कोटि-कोटि बधाई

Comment by कल्पना रामानी on March 13, 2014 at 10:25am

आदरणीय सौरभ जी, आपका लिखा हुआ हर शब्द ध्यान से पढ़ा और आत्मसात किया। आपका हार्दिक आभार।

नमन आपको और मंच को, ज्ञान यहीं सब पाया।

सार-छंद का सार 'कल्पना', पूर्ण समझ में आया। सादर  

Comment by कल्पना रामानी on March 13, 2014 at 10:22am

आदरणीया राजेश जी, कल्पना मिश्रा जी, शशि जी, आप सबकी सराहना पाकर हार्दिक प्रसन्नता हुई, आप सबका सादर धन्यवाद।

Comment by कल्पना रामानी on March 13, 2014 at 10:20am

आदरणीय अखिलेश जी,  विजय जी,  गिरिराज जी, लक्ष्मण प्रसाद जी,  मनोज जी, ओमप्रकाश जी, आप सबकी छंद पर इतनी सुंदर आत्मीय टिप्पणियाँ पाकर लगा  कि कुछ सार्थक कह सकी हूँ। आप सबका मन से  आभार। सादर   

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service