जो पाँच साल दहाड़े थे गिड़गिड़ाने लगे,
हमें ही वोट दो कहकर करीब आने लगे।
तुम्हारी ज़ात के नेता हैं हम तुम्हारे हैं,
ग़रीबों को ये बताकर गले लगाने लगे।
तुम्हारा हाल बदल देंगे एक मौका दो,
गली गली उसी ढपली को फिर बजाने लगे।
जो भीड़ आई है रैली में, है किराये की,
वो जिसके ज़ोर पे क़द को बड़ा दिखाने लगे।
बहा के ख़ून के दरिया सभी सियासतदां,
हर एक ख़ून के क़तरे से फ़ैज़ उठाने लगे।
ये देस लूट रहे हैं हमारे नेता जी,
जिसे आज़ाद कराने में थे ज़माने लगे।
हमारा मुल्क अभी भी जहाँ से बेहतर है,
जो लूट की है सियासत अगर ठिकाने लगे।
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
सरिता भाटिया जी आपका धन्यवाद.
जनाब अखिलेश कृष्ण साहब बहुत बहुत शुक्रिया.
जनाब गिरिराज भाई आपको मेरी कोशिश पसंद आई शुक्रगुज़ार हूँ मैं आपका .
हमारा मुल्क अभी भी जहाँ से बेहतर है,
जो लूट की है सियासत अगर ठिकाने लगे।............वाह! बहुत खूब
आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय इमरान जी
जनाब इमरान भाई अच्छी ग़ज़ल है, सारे अशआर अच्छे हुये हैं बहुत बहुत बधाई आपको
क्या बात इमरान भाई लाजवाब गजल सटीक
आदरणीय इमरान भाई ,
मतलबिया नेताओं की पोल खोलती अच्छी रचना, हार्दिक बधाई
आ. इमरान भाई , लाजवाब सामयिक ग़ज़ल कही है , आपको तहे दिल दे बधाइयाँ ॥
हमारा मुल्क अभी भी जहाँ से बेहतर है,
जो लूट की है सियासत अगर ठिकाने लगे -------- बहुत खूब , भाई बहुत बधाइयाँ ॥
धन्यवाद ओमप्रकाश जी.
इमरान जी आप ने रचना में पूरी राजनीति का खाका खीच दिया . बधाई .
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