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फ़क़त दो चार पल की बात है ये
हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
रफ़ाक़त आप कैसे कह रहे हैं ?
असल में पीठ खाई घात है ये
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
न समझोगे दिलों की बात है ये,
ख़िरदमन्दी - बुद्धिमानी
मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये
जो लब खामोश,जोड़े हाथ हैं तो
समझ लो बिन लड़े ही मात है ये
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति ने हमेशा मेरा उत्साह वर्धन किया ॥ आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आदरणीय गुमनाम भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीय श्री गिरिराज भंडारी जी आपकी अनुभवी कलम से हमेशा कि तरह बेहतरीन अशआर निकले हैं ।
मेरी इस बेबसी को दो दुआयें
रफीकों से मिली सौगात है ये इस शेर के लिए विशेष रूप से बधाई स्वीकार करें ।
ख़िरदमन्दी से थोड़ी सी अलग है
ये दिल की बात है, ज़ज्बात है ये
वाह क्या बात है बहुत बढ़िया
बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिये
फ़क़त दो चार पल की बात है ये
हाँ, बस इक रात जैसी रात है ये
कबूतर, तुम यक़ीं करना समझ कर
कहूँ क्या? आदमी की जात है ये
khob hai sir ji wah wah ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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