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तुम ही तुम..........बृजेश

निःश्वसन

उच्छ्वसन

सब देह-कर्म, यह अवगुंठन

मोह-पाश के बंधन तुम

बस तुम! तुम ही तुम

 

व्यक्त हाव

अव्यक्त भाव

नेह-क्लेश, अभाव-विभाव

रूप-गंध के कारण तुम

बस तुम! तुम ही तुम

 

सम्मुख हो जब

विमुख हुए, तब 

मनस-पटल की चेतनता सब 

अनुभूति-रेख में केवल तुम

बस तुम! तुम ही तुम

- बृजेश नीरज 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 24, 2014 at 9:32pm

निःश्वसन

उच्छ्वसन

सब देह-कर्म, यह अवगुंठन

मोह-पाश के बंधन तुम

बस तुम! तुम ही तुम---------हमारा जीवन ,ये आती जाती साँसे ,ये मोह माया सब उस सर्वशक्तिमान,निराकार अगोचर परब्रह्म से ही तो हैं 

व्यक्त हाव

अव्यक्त भाव

नेह-क्लेश, अभाव-विभाव

रूप-गंध के कारण तुम

बस तुम! तुम ही तुम--------मानव/प्रकृति  स्वभाव रंग गंध सब उसी से है 

वो हमारे अन्दर है सब कुछ उसीसे है 

बहुत सुन्दर भावों को शब्दों की माला में पिरोया है ...अतिसुन्दर उत्कृष्ट प्रस्तुति 

बहुत- बहुत बधाई ब्रिजेश जी. 

 ----

 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2014 at 9:19pm

आदरणीय बृजेश भाई एक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by बृजेश नीरज on March 24, 2014 at 8:19pm

आदरणीय गिरिराज जी, आपका बहुत-बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 24, 2014 at 8:19pm

आदरणीया सरिता जी, आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 24, 2014 at 10:45am

आदरणीय बृजेश भाई , आंतरिक भाव स्थिति को बयान करती आपकी सुन्दर रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Sarita Bhatia on March 24, 2014 at 10:17am

बहुत खूब आपका कथन हमेशा बढ़िया होता है 

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 7:34pm

आदरणीय शिज्जु जी बहुत-बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 7:33pm

आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 23, 2014 at 6:58pm

आदरणीय बृजेश जी बहुत सुन्दर व सुगढ़ भावाभिव्यक्ति है इस खूबसूरत रचना के लिये बहुत बहुत बधाई

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 4:02pm

सच है आदरणीय श्री ब्रजेश जी 

इस से भी परे है कुछ और 

देर है मै और तुम की परिधि लांघने की 

सुन्दर भाव युक्त रचना हेतु सादर बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

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