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स्व के पार ... (विजय निकोर)

स्व के पार ...

 

हाथ से हाथ छूटने की

तारीख़ तो सपनों को पता है

हाथ फिर कभी मिलेंगे ...

तारीख़ का पता नहीं

 

तुम्हारे चले जाने के बाद

मेरे दिन और रात

उदास, चुपचाप, कतरा-कतरा

बहते रहे हैं

 

मेरे वक्त के परिंदे की पथराई पलकें

इन उनींदी आँखों की सिलवटों-सी भारी

उम्र के सिमटते हुए दायरों के बीच

थके हुए इशारों से मुझसे

हर रोज़ कुछ कह जाती हैं

और मैं रोज़ कोई नया बहाना लिए

एक दिन और माँग लिया करता हूँ

जानता हूँ

तुम आओगी ...

 

कब आओगी?

 

------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 640

Comment

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Comment by vijay nikore on April 4, 2014 at 7:57am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र आशुतोष जी।

Comment by vijay nikore on April 2, 2014 at 10:29am

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय मित्र लक्ष्मण जी।

 

Comment by Priyanka singh on April 1, 2014 at 2:37pm

तुम्हारे चले जाने के बाद

मेरे दिन और रात

उदास, चुपचाप, कतरा-कतरा

बहते रहे हैं

 सच ....कुछ मेरे शब्दों जैसी लगी ये लाइन्स ......दिल से लिखी एक और सुन्दर रचना के लिए ....बहुत बहुत बधाई आपको सर ....

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 10:55am

आदरणीय बड़े भाई विजय जी बहुत कहा बधाई स्वीकारें .बस यही कहना चाहूंगा -

जुदाई लाख चाहे हो मिलन की आस मत छोडो
हमें मालूम है यारों इसी को जिंदगी कहते


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 9:54am

आ. बड़े भाई विजय जी , जितना दुख दायी विरह है , उतना ही मज़बूत मिलन का  भरोसा भी , जो एक और दिन मांगने के लिये मजबूर कर देता है !! वाह ! भाई विजय जी बहुत सुन्दर !!  आपको मेरी हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Arun Sri on March 31, 2014 at 11:32am

कितना प्रिय रहा होगा वो जिसे देखे बिना मरने का मन भी न करें और उसका वियोग कितना दारुण , ये सोचकर मन सिहर जाता है ! अत्यंत भावपूर्ण !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 31, 2014 at 11:08am

आदरणीय विजय सर बहुत खूब बेहद भावपूर्ण ह्रदयस्पर्शी रचना है दिली दाद कुबूल करें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 31, 2014 at 10:07am

तुम्हारे चले जाने के बाद

मेरे दिन और रात

उदास, चुपचाप, कतरा-कतरा

बहते रहे हैं

बहुत सुंदर भाव, सरल शब्दों से संजोयी रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय जी

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 29, 2014 at 4:08pm

आदरणीय विजय सर ..इस सुंदर रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 27, 2014 at 3:37pm

दिल के अरमानो के कतरा कतरा बहने का अर्थ है, आशा वादी होना | सच भी है आदरणीय निकोरे ज, रोज सुबह होने के आशा लिए ही सोते है | ऐसे भाव लिए सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई 

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