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1222- 1222- 1222

मुसीबत साथ आई हमसफर की तरह

लगे है धूप भी अब राहबर की तरह

 

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                     अज़ीयत =यातना

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह

 

झुलसने लगता है मन सुब्ह उठते ही

हुये दिन गर्मियों की दोपहर की तरह

 

घुटन होने लगी है इन हवाओं मे

जहाँ लगने लगा है बन्द घर की तरह

 

हिसारे ग़म से बाहर लाये कोई तो                    हिसारे ग़म= ग़म का घेरा

मुसल्सल घूमता हूँ इक भँवर की तरह

 

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2014 at 8:18am

आदरणीय लक्ष्मण सर आपका बहुत बहुत धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 2, 2014 at 8:18am

आदरणीय केवल प्रसाद जी आपका तहेदिल से शुक्रिया

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 1, 2014 at 11:18am

आ0 शिज्जू भाई जी, अच्छी गजल के लिए बधाई स्वीकारें।  सादर,

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 1, 2014 at 11:05am

आदरणीय भाई शिज्जू जी , बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है . बस इतना ही कहना चाहूंगा -

गम हमारा यार होकर बैठता , सुख सदा मेहमान बनकर आ गया

कोटि कोटि हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 10:04am

आदरणीय विजय निकोर सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 10:03am

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया 

Comment by vijay nikore on April 1, 2014 at 9:53am

//झुलसने लगता है मन सुब्ह उठते ही

हुये दिन गर्मियों की दोपहर की तरह//

इस अच्छी गज़ल के लिए आपको बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 9:43am

आ. मुकेश भाई , जहाँ तक मेरी जानकारी है , बह्र मे कोई गड़बड़ी नही है , किसी भी बह्र के अंतिम रुक्न मे एक अरिरिक्त मात्रा  की छूट कोई भी ले सकता है , जिसे आगे निभाना भी ज़रूरी नही रहता ॥ बस मात्रा गिरा के 2 को 1 करके छूट नही ले सकते ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 1, 2014 at 9:38am

आ. शिज्जू भाई , एक और  खूब सूरत गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                  

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह -- बहुत खूब भाई जी , आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 8:41am

अब मुकेश जी ये बात तो अब सुधिजन ही बता सकते हैं क्यूँकि बह्र के सम्बंध में मेरी जानकारी कम ही है।

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