For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222- 1222- 1222

मुसीबत साथ आई हमसफर की तरह

लगे है धूप भी अब राहबर की तरह

 

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                     अज़ीयत =यातना

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह

 

झुलसने लगता है मन सुब्ह उठते ही

हुये दिन गर्मियों की दोपहर की तरह

 

घुटन होने लगी है इन हवाओं मे

जहाँ लगने लगा है बन्द घर की तरह

 

हिसारे ग़म से बाहर लाये कोई तो                    हिसारे ग़म= ग़म का घेरा

मुसल्सल घूमता हूँ इक भँवर की तरह

 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 859

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 1, 2014 at 8:37am

आदरणीया शिज़्जू जी
शुक्रिया..
मतलब..आपने..तरह की तख़्ती 21 रक्खी है..ये तो ठीक है पर सिर्फ़ इस अरकान के सालिम रूप मेन जितनी भी बे'हर है..लघु की छूट नहीं ली जा सकती..मैं ग़लत भी हो सकता हूँ..ज्ञानी जान कृपया इसे बताएँ.
मेरी बात को चर्चा के रूप में ही लें..आख़िर हम सब सीख रहे है


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 7:55am

आदरणीया वंदना जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 7:55am

आदरणीय मुकेश भाई आपका हार्दिक आभार। अरूज में छूट के अनुसार किसी भी अरकान में एक अतिरिक्त लघु लिया जा सकता है बशर्ते वह एक स्वतंत्र लघु न हो।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 7:53am

आदरणीया कुंती जी आप जैसी समर्पित रचनाकार से सराहना पाना बड़े गौरव की बात है आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 1, 2014 at 7:52am

आदरणीय गुमनाम भाई आपका हार्दिक आभार

Comment by vandana on April 1, 2014 at 6:47am

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                     

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह

हिसारे ग़म से बाहर लाये कोई तो                    

मुसल्सल घूमता हूँ इक भँवर की तरह

वाह एक शानदार ग़ज़ल आदरणीय 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on March 31, 2014 at 11:33pm

आदरणीय शिज़्जू जी
अच्छी ग़ज़ल कही है आपने ..ख़याल भी खूबसूरत है..

पर क्या इस इस बे'हर मे किसी तरह की छूट ली जा सकती है?

मफाईलून.. 
मुबारकबाद और दाद

Comment by coontee mukerji on March 31, 2014 at 4:50pm

बहुत सुंदर गज़ल.....

मुसीबत साथ आई हमसफर की तरह

लगे है धूप भी अब राहबर की तरह.....बहुत बहुत बधाई शकूर भाई.

Comment by gumnaam pithoragarhi on March 31, 2014 at 4:06pm

शकूर जी ! बधाई ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,खूब कहा है

मुसीबत साथ आई हमसफर की तरह

लगे है धूप भी अब राहबर की तरह

 

सहे जाता हूँ मौसम की अज़ीयत मैं                    

बियाबाँ मे किसी उजड़े शजर की तरह

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service