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साकी तो  हो गिलास भी हो क्या !
घूँट-दो -घूँट ये प्यास भी हो क्या  !
--
दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !
--
क्यूँ लगता है डर सा अंधेरों को ?
मुझसे कह दो उजास भी हो क्या !
--
ढँक रही हो  मुझको  शिदद्त  से,
मेरी हमनफ़स लिबास भी हो क्या !
--
दूध जैसी निर्मल पहचान बारहा ,
वक़्त पे दही की खटास भी हो क्या !
-- 
अविनाश बागडे  (मौलिक/अप्रकाशित )

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 14, 2014 at 2:33pm

दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !

प्रिय अविनाश जी सुन्दर भाव लिए अच्छी बनी गजल। ।
भ्रमर ५


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 8:11pm

आदरनीय अविनाश भाई , ग़ज़ल कहने का बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है , बह्र अलग अलग मिसरों मे अलग अलग लग रही है , एक बार देख लीजियेगा ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 1, 2014 at 4:32pm

आदरणीय अविनाश जी ..नए पन और ताजगी से भरी शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर 

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"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
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"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
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"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
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"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
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"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
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