साकी तो हो गिलास भी हो क्या !
घूँट-दो -घूँट ये प्यास भी हो क्या !
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दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !
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क्यूँ लगता है डर सा अंधेरों को ?
मुझसे कह दो उजास भी हो क्या !
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ढँक रही हो मुझको शिदद्त से,
मेरी हमनफ़स लिबास भी हो क्या !
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दूध जैसी निर्मल पहचान बारहा ,
वक़्त पे दही की खटास भी हो क्या !
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अविनाश बागडे (मौलिक/अप्रकाशित )
Comment
दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !
मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !
प्रिय अविनाश जी सुन्दर भाव लिए अच्छी बनी गजल। ।
भ्रमर ५
आदरनीय अविनाश भाई , ग़ज़ल कहने का बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है , बह्र अलग अलग मिसरों मे अलग अलग लग रही है , एक बार देख लीजियेगा ॥
आदरणीय अविनाश जी ..नए पन और ताजगी से भरी शानदार ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई ..सादर
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