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बांट के छाव, धूप पीते हैं
ज़िन्दगी हम शज़र की जीते हैं
चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं
तीर दिल पे चलाये छुप के, पर
सामने सब के ज़ख़्म सीते हैं
मैने देखा है वक़्ते आख़िर में
हाथ जितने दिखे, वो रीते हैं
बात उल्टी लगेगी, है सीधी
स्वाद मीठे, असर से तीते हैं
लम्हे खुशियों के ज्यों कपूर उड़े
ग़म के , ज्यों माह साल बीते हैं
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
एक अच्छी ग़ज़ल क लिए बधाई.
चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं ... . .इस शेर ने मुझे बहुत मुतास्सिर किया है.
दिल से दाद दे रहा हूँ, आदरणीय.
सादर
आदरणीय बड़े भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका आभारी हूँ ॥
आदरणीया प्राची जी , आपकी सराहना ने गज़ल का मान और मेरा हौसला दोनो बढ़ा दिया , आपका बहुत बहुर आभार ॥
छोटे भाई , सुंदर भाव , अच्छी गजल , बधाई
चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं.................क्या बात है!
मैने देखा है वक़्ते आख़िर में
हाथ जितने दिखे, वो रीते हैं.................बहुत सुन्दर
बात उल्टी लगेगी, है सीधी
स्वाद मीठे, असर से तीते हैं.................बहुत गहरी बात
इस सुन्दर गज़ल पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएं आ० गिरिराज जी
आदरणीय भुवन भाई , ग़ज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥
आ. मुकेश भाई , ग़ज़ल को पसन्द करने के लिये आपका आभार ॥
आ. लक्ष्मण भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये बहुत शुक्रिया ॥
बांट के छाव, धूप पीते हैं
ज़िन्दगी हम शज़र की जीते हैं
चाल दोनो तरफ की खुद चल के
खुश बड़े हैं , कि दाँव जीते हैं
बेहद खूबसूरत इस उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें। ....
आदरणीय गिरिराज जी
इस खूबसूरत ग़ज़ल पर ढेरो मुबारकबाद
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