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तीर दिल पे चलाये छुप के, पर ( ग़ज़ल ) गिरिराज़ भंडारी

2122       1212      112/22

बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं

चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं

मैने  देखा  है  वक़्ते   आख़िर  में

हाथ   जितने  दिखे, वो   रीते  हैं

बात   उल्टी  लगेगी,  है  सीधी

स्वाद   मीठे,  असर  से  तीते  हैं

लम्हे खुशियों के ज्यों कपूर उड़े

ग़म के , ज्यों माह साल बीते हैं

**************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 3, 2014 at 6:36pm

/बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं

आदरणीय भाई गिरिराज जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:25pm

आदरणीय बैद्यनाथ भाई , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:23pm

आदरणीय शिज्जू भाई , आपकी सराहना से रचना कर्म को आत्मिक संतोष मिलता है , आपका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:21pm

आदरणीय बड़े भाई विजय जी , आपकी सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 3, 2014 at 5:20pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥

Comment by Saarthi Baidyanath on April 3, 2014 at 4:52pm

जोरदार शुरुआत ..

बांट के     छाव,     धूप     पीते   हैं      

ज़िन्दगी  हम  शज़र  की जीते हैं...उम्दा मान्यवर 

बात   उल्टी  लगेगी,  है  सीधी

स्वाद   मीठे,  असर  से  तीते  हैं...क्या कहने 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 3, 2014 at 10:21am

//चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप केपर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं//   वाह आदरणीय गिरिराज सर बेहतरीन अशआर हैं दिली दाद कुबूल करें

 

Comment by vijay nikore on April 3, 2014 at 3:21am

 

इस अच्छी गज़ल के लिए आपको बधाई, भाई गिरिराज जी।

 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 2, 2014 at 9:39pm

बहुत खुबसूरत गजल कही आपने आदरणीय गिरिराज जी

चाल दोनो तरफ की खुद चल के

खुश  बड़े   हैं , कि  दाँव  जीते  हैं

तीर  दिल  पे चलाये छुप के, पर

सामने   सब  के  ज़ख़्म  सीते  हैं...............इन दो शेर पर विशेष बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 2, 2014 at 8:46pm

आदरणीय चन्द्र शेखर भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

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