For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल: जब तुम बिना रहा

पत्थर बना रहा सदा पत्थर बना रहा
ग़ज़लों में रोये ज़ार हम वो अनसुना रहा

दुनिया है हुक्मरान की क़ानून हैं बड़े
लाखों किये जतन मगर ये बचपना रहा

रातो में नीद भी नही दिन में नही सुकूं
सब कुछ रहा अजीब सा जब तुम बिना रहा

मंजिल से दूर रोकने क्या क्या नही हुआ
रस्ते भुलाने के लिए कुहरा घना रहा

सोचा बुला दूँ जो तुझे जाएगी मेरी जान
जीता रहा जरूर मै पर तडपना रहा

अनुराग सिंह “ऋषी”

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 770

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 7:47pm

आपने बह्र  - 2212 1212 2212 12  मे गज़ल कही चाही है , उसके अनुसार - मै गलत मिसरे की तक्तीअ कर के दे रहा हूँ , क्रिपया देख लें ---

दुनिया है ब/ 2211या 2221 /   ड़े लोगों की 1212  /    क़ानून हैं 2212 /  बड़े 12

रातों में न 2121 या 2221 या 2211 / ही नींद थी 1212 /  दिन में नही 2212 / था चैन 12 - एक मात्रा अतिरिक्त की छूट

जीता रहा 2212 / जरूर पर 1212 / संग तडपना 21212  / रहा 12

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2014 at 7:25pm

रातों में नही नींद थी दिन में नही था चैन 
सब कुछ रहा अजीब सा जब तुम बिना रहा 

अनुराग जी सुन्दर भाव लिए गजल अच्छी कोशिश। बाकी गजल गुरु लोगों की सलाह है कृपया ध्यान दें
भ्रमर ५

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 14, 2014 at 7:14pm

आदरणीय उपर्युक्त ग़ज़ल मैं बह्र 2212 1212 2212 12 के अनुसार लिखना चाह रहा था
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 4:37pm

आदरणीय अनुराग भाई , त्रुटि पूर्ण मिसरे का अंदाजा तो तब होगा जब आप किस बह्र मे गज़ल कहना चाह रहे हैं बतायेंगे !

मै सब कुछ समझाने के योग्य नही हूँ , आप लेख पढने के बाद कुछ कठिनाई महसूस करें तो उसे शायद मै दूर कर पाऊँ ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 4:17pm

आदरणीय अनुराग भाई , यहाँ सभी सीख रहे हैं , अतः आपको अगर ग़ज़ल कहनी है तो -

http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn

इस ग्रुप मे ज्वायन करके लेखों का अध्ययन करना चाहिये , मैने भी यही किया है ! सारे नियम कानून यहीं मिल जायेंगे । आप प्रयास ज़रूर करें बहुत जल्द आप बह्र जान जायेंगे और बह्र मे गज़ल कह सकेंगे , मेरा विश्वास है !! सादर !!

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 14, 2014 at 1:44pm

ह्रदय से आपको नमन है आदरणीय गिरिराज सर एवं जर्रानवाजी के लिए बहुत बहुत आभार
किन्तु सर हमारा बह्र पक्ष बेहद कमजोर है तक्तीअ करना नही आता कोशिश ये रहती है धुन के साथ चल सकूँ | अतः आपसे निवेदन है त्रुटी पूर्ण मिसरों को चिन्हित कर दें ताकि मार्गदर्शन हो सके
सादर

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 14, 2014 at 1:41pm

बहुत बहुत आभार आपका चंद्रशेखर सर
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 11:31am

आदरणीय अनुराग भाई , ग़ज़ल बहुत सुन्दर लगी , आपको बहुत बधाइयाँ !!  लेकिन बह्र मुझे अलग अलग मिसरे मे अलग अलग लग रही है , आप बह्र का उल्लेख ज़रूर किया कीजिये तकि सीखने वालों को समझने मे आसानी हो ॥

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 14, 2014 at 11:00am
वाह्ह वाह्ह क्या बात

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
14 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
4 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
5 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service