For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला

सभी रास्ताें पर सिपाही खटे हैं 

ताे फिर लाेग क्याें रास्ते से हटे हैं । 

सियासत अाै मज़हब की दीवारें देखाे 

दीवाराें से ही लाेग गुमसुम सटे हैं । 

सरहद है सराें के लिए अाखरी हद 

अकारण यहाँ पर कई सर कटे हैं । 

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । 

जिन्हें मुल्क बरबाद करने की जिद थी

वही लाेग सिंहासनाें पर डटे हैं । 

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । 

(माैलिक व अप्रकाशित)

Views: 1007

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 9:48pm

अादरणीय शकील जमशेदपुरी जी अाप ने इसे सराहा ताे मेरा प्रयास सार्थक हुअा । हार्दिक अाभार ।

Comment by शकील समर on April 15, 2014 at 3:57pm

इस सुंदर गजल के लिए बधाई आदरणीय।

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 3:22pm

अा.  भुवन निस्तेज जी अाप ने इस  ग़ज़ल की बहर का उल्लेख कर के कुछ जिज्ञासाअाें काे सम्बाेधित किया उसके लिए हार्दिक अाभार । 

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 3:17pm

अा.  Er. Ganesh Jee "Bagi"  जी बहर के सम्बन्ध में अा.  भुवन निस्तेज जी ने प्रष्ट कर दिया है । 

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 2:58pm

अा.  rajesh kumari जी कुछ दुखद यादें हमारे साथ भी जुडी हैं । सायद इस भाव के पीछे थाेडा सा उस याद का भी याेगदान रहा हाेगा । 

Comment by Krishnasingh Pela on April 15, 2014 at 2:55pm

अादरणीय  Anurag Singh "rishi" जी, अा. भुवन निस्तेज जी, अा.  कल्पना रामानी जी, अा.  rajesh kumari जी, अा.  गीतिका 'वेदिका' जी, अा.  Er. Ganesh Jee "Bagi" जी, अा.  Mukesh Verma "Chiragh" जी, अा. धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी अाप सभी लाेगाें ने मेरी ग़ज़ल काे पढ कर अपनी अनमाेल प्रतिक्रियाअाें द्वारा मेरा मान बढाया है । अाप सभी लाेगाें के प्रति हार्दिक अाभार प्रकट करता हूँ । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 15, 2014 at 12:33pm

आपके अशआर में जबरदस्त कटाक्ष है आदरणीय कृष्ण सिंह जी, अंतिम शेर पर क्या कहने, ग़ज़ल यहाँ चरम को प्राप्त करती है , मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं, सन्न से जा लगता है, बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 15, 2014 at 10:39am

अच्छे अश’आर हैं। दाद कुबूलें। कुछ जगह वज़्न दुरुस्त करने की ज़रूरत है।

Comment by भुवन निस्तेज on April 14, 2014 at 11:26pm

आदरणीय इस ग़ज़ल के लिए  बहरे मुतकारिब मुसम्मन सालिम (१२२ १२२ १२२ १२२ ) मात्रा ली गयी है...

हाँ कुछेक जगहों पर बहर पर  समस्या दिख रही है...

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 14, 2014 at 11:03pm

आदरणीय कृष्ण जी
बहुत सुंदर ख़यालात है ग़ज़ल में..बधाई
कहीं-2 गाड़ी बे'हर की पटरी से उतरी भी है.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service