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ग़ज़ल : तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला

सभी रास्ताें पर सिपाही खटे हैं 

ताे फिर लाेग क्याें रास्ते से हटे हैं । 

सियासत अाै मज़हब की दीवारें देखाे 

दीवाराें से ही लाेग गुमसुम सटे हैं । 

सरहद है सराें के लिए अाखरी हद 

अकारण यहाँ पर कई सर कटे हैं । 

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । 

जिन्हें मुल्क बरबाद करने की जिद थी

वही लाेग सिंहासनाें पर डटे हैं । 

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । 

(माैलिक व अप्रकाशित)

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2014 at 10:21pm

वजन क्या लिया है आदरणीय ?

Comment by वेदिका on April 14, 2014 at 10:09pm
खूबसूरत गजल के लिए बधाई प्रेषित है!!
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2014 at 9:44pm

सरहद है सराें के लिए अाँखरी हद 

इस हद पर कई बेकसूर सर कटे हैं । -----बिलकुल सही कहा ...इस शेर ने कुछ दुखद यादें ताज़ा कर दी

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । ----जबरदस्त शेर 

बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई तहे दिल से दाद कबूलें 

 

Comment by कल्पना रामानी on April 14, 2014 at 9:26pm

वाह, वाह!! शानदार गजल के लिए आपको हार्दिक बधाई

Comment by भुवन निस्तेज on April 14, 2014 at 9:10pm

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं । 

अंदाज़े बयाँ क्या कहें। 

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 14, 2014 at 7:19pm

वाह खूबसूरत अंदाज़-ए-बयाँ

तुम्हारे लिए जश्न हाेगा ये मेला 

मुझे बेचने कुछ चने चटपटे हैं ।
............क्या कहने

Comment by Sachin Dev on April 14, 2014 at 4:51pm

चमकती फिसलती हैं कारें महंगी 

मगर अादमीयत के जूते फटे हैं । वाह ..... बहुत खूब आदरणीय भाई कृष्ण सिंह जी , क्या बेहतरीन गजल लिखी आपने ! हार्दिक बधाई स्वीकारें ! 

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