कविता -
शरीर में चुभे हुए काँटे
जो शरीर को छलनी करते हैं;
वह टीस
जो दिल की धड़कन
साँसों को निस्तेज करती है
यह तुम्हें आनंद नहीं देगी
प्रेम का कोरा आलाप नहीं यह
वासना में लिपटे शब्दों का राग नहीं
छद्म चिंताओं का दस्तावेज़ नहीं
इसे सुनकर झूमोगे नहीं
यह तुम्हें गुदगुदाएगी नहीं
सीधे चोट करेगी दिमाग पर
तड़प उठोगे
यही उद्देश्य है कविता का
रात के स्याह-ताल पर
नृत्य करने वाले नर-पिशाचों के लिए
नहीं होती कविता
कविता पैदा करती है
जिंदा लोगों में झुरझुरी
एक सिहरन!
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
अच्छी कविता है आ0 बृजेश जी, बहुत बधाई!!
वैसे पहले भाग में आपने कविता को एक ही साथ काँटों और टीस, की उपमा दी है, जबकि इनमें एक एक पुल्लिंग है और एक स्त्रीलिंग!!
सीधे चोट करेगी दिमाग पर!!! - कविता के संज्ञानात्मक उद्देश्य को आपने काफी वरीयता दी है, वैसे भावात्मक पक्ष को भी नजरंदाज नहीं करना चाहिए।
एक अच्छी कृति के लिए बधाई स्वीकारें। सादर।
वही कविता है जो छलनी कर दे|
आदरणीय बृजेश "नीरज" जी... इस सच्चाई को बहुत ही सुन्दर तरीके से बताया है आपने ...
आपको हृदय से शुभकामनाएं अर्पित करता हूँ|
आदरणीय बृजेश जी
इस मंच पर आप जैसे तमाम दोस्तों की हिन्दी पर मज़बूत पकड़ देखकर खुद को सौभाग्यशाली महसूस करता हूँ. आप लोगों से बहुत कुछ सीख सकूँगा.
जितना समझता हूँ उसके अनुसार, कविता मे विचारों की श्रंखला को कहीं भी आपने टूटने नहीं दिया है. सीधे दिल पर असर करती है आपकी रचना.
बहुत बहुत मुबारकबाद
सुन्दर रचना के लिए बधाई -
कविता लिख सकता वही जिसकी जुबां से आह निकले,
कविता के भाव भी समझे वही, जो भावुक हो, ज़िंदा दिल हो, मन में भाव फूट पड़े
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