गुणीजनों की शान में, हाज़िर दोहे पाँच
मिले ज्ञान जो छंद का, कभी न आए आँच
करें ब्रह्म का ध्यान हम, पीटें नहीं लकीर
भेदभाव सब छोड़ दें, रंग-जाति तकदीर
सबसे पहले हम जगें, जागे फिर संसार
करें कर्म अपने सभी, सुमिरें पवन कुमार
मज़ा सवाया और है, मज़ा अढ़ाई और
मज़ा मिले तब आम का, घने लगे जब बौर
कन्या पूजन वे करें, राखें उनकी लाज
होती अम्बे की कृपा, बनते सारे काज
वाणी कबिरा की भली, प्रेम राह जग जोत
ग्रंथ किनारे धर भजे, ज्ञानवान वह होत
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
मौलिक /अप्रकाशित
१९.०४.२०१४
Comment
स्नेही शकूर साहब,
सादर
हमको किसके गम ने मारा ये कहानी फिर सही
आप अपने हैं बस हर दिन सुहाना हर रात नयी
आभार . लिखते रहिये.
आदरणीय कुशवाहा सर ये बात मुझे अभी मालूम हुई आपको नेत्र सम्बंधित रोग है इसके बावजूद आपकी संलग्नता और रचना कर्म यह साबित करते हैं कि आपके पास तकलीफों से उबर पाने का माद्दा कितना है। आप जैसे वरिष्ठ सदस्यों से ही कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है। आपको सादर नमन है और इस रचना के लिये दिली मुबारकबाद स्वीकार करें।
स्नेही भतीजी गीतिका वेदिका जी
सस्नेह / सादर
अपने से वरिष्ठ के प्रति आदर भाव रखती हो ये आपके भारतीय संस्कार हैं. जिसे कुछ लोग खो चुके हैं या खोने की कगार पर हैं. पोथी पढ़ के , विशिष्टता पा कर कोई महान नही हो सकता जब तक श्रेष्ठ सिधान्तों को अपने जीवन में न बरते. जग जाहिर है , मैने खुले मंच पर स्वीकार किया है मै तों एक छाया मात्र हूँ, लोगो के प्रकाश से कभी कभी दिख जाता हूँ . मेरा लक्ष्य राष्ट्रीय चरित्र जगाना, उसमे ये साहित्य सेवा भी एक माध्यम है . नयी प्रतिभाओं को मंच देना. मेरा काम है. पद की लालसा कभी नही की , अपमान सह कर भी टिका रहता हूँ, जब कि ये नियम विरुद्ध होता है. कुछ अंतर तों मुझमे और अन्य में होना ही चाहिये. केवल एक लक्ष्य ..राम काज करिबे को आतुर आप सहित्य सेवा करते रहिये. अहंकार मत लाना . मैं सफल होऊं या असफल तकनिकी विधा में कोई फर्क इस से राष्ट्र को नहीं पड़ने वाला. हाँ यदि मै अपने कर्म से किसी भी एक चेहरे पर मुस्कान ला सका ..प्रभू कृपा होगी . वो जरूरी है. आगे फिर खुश रहिये . ये देश आपका है और सहित्य भी. दोनों खतरे में हैं. बाक़ी सब समझदार हैं.
स्नेही श्री पाठक जी
सादर
राह दिखाते रहिये आभार
आदरणीया कल्पना जी सादर
सीखना शुरू किया है, आगे खराब भी हो सकते हैं.
प्रोत्साहित और राह दिखाती रहिएगा
आभार
सुन्दर दोहे है,आदरणीय प्रदीप जी,बहुत बहुत बधाई आपको
आदरणीय प्रदीप सर सुंदर दोहे लिखे हैं आप नें । बहुत बहुत बधाई सर । सादर
आदरणीय श्री ब्रजेश जी
सादर
विधा की दुनिया मेरे लिए नयी है. इस बार वैतरणी पार करने की इच्छा लेकर आया हूँ. कहन , कथन, विषयवस्तु चयन का ज्ञान मिले . आप सब शुभ चिंतकों का स्नेह , प्रोत्साहन प्राप्त होगा तों सफल होऊंगा
आभार
अपना स्नेहिल आशीर्वाद हमेशा बनाये रखियेगा आदरणीय प्रदीप जी,
सादर !
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