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गजल : तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए//शकील जमशेदपुरी

बह्र : 212/212/212/212
———————————————

तंग हो हाथ पर दिल बड़ा कीजिए
चाहे जितने भी गम हों हंसा कीजिए

ति​तलियां लौट जाती हैं हो कर उदास
सुब्ह में फूल बन कर खिला कीजिए

है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए

प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए

चांद से आपकी क्यों बहस हो गई
ऐसे वैसों के मुंह मत लगा कीजिए

यूं मकां है मगर घर ये हो जाएगा
बनके मेहमान कुछ दिन रहा कीजिए

फिर कहीं होने पाए न ये हादसा
दिल किसी का न टूटे दुआ कीजिए

यादों की इन सलाखों में घुटता है मन
हो गई इंतहा अब रिहा कीजिए

बस गुजारिश है इतनी मेरी आपसे
हंस के दुनिया से मुझको विदा कीजिए

-शकील जमशेदपुरी

________________________________

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by rajesh kumari on April 23, 2014 at 7:52pm

है जलन उनको मैं चाहता हूं तुम्हें
मत सहेली की बातें सुना कीजिए-----हाहाहा सही कहा :)))

प्यार हो जाएगा है ये दावा मेरा
आप गजलें हमारी पढ़ा कीजिए-----क्या बात ...

सुन्दर ग़ज़ल कही है ,तहे दिल से बधाई आपको. 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2014 at 9:49am

वाह! आदरणीय शकील साहब, बहुत खुबसूरत गजल कही आपने, दिली बधाइयाँ स्वीकार कीजिये

Comment by कल्पना रामानी on April 23, 2014 at 9:19am

वाह, वाह!! शानदार गजल! आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 23, 2014 at 8:09am

आदरणीय बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकारें
सादर

Comment by शकील समर on April 23, 2014 at 12:50am

आदरणीया गीतिका जी बहुत—बहुत शुक्रिया

Comment by शकील समर on April 23, 2014 at 12:49am

धन्यवाद CHANDRA SHEKHAR PANDEYजी। इस हौसला अफजाई के लिए।

Comment by वेदिका on April 22, 2014 at 10:48pm
वाह! बहुत खूब गजल!
बधाई स्वीकारिये आ0 शकील जी!
Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on April 22, 2014 at 9:22pm
भाई जी
बेहद ख़ूबसूरत
और
ऐसे वैसे के मुँह
जवाब नहीं।

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