चौपई छंद - प्रति चरण 15 मात्रायें चरणान्त गुरु-लघु
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किसी राष्ट्र के पहलू चार । जनता-सीमा-तंत्र-विचार ॥
जन की आशा जन-आवाज । जन का जन पर जनता-राज ॥
प्रजातंत्र वो मानक मंत्र । शोषित आम जनों का तंत्र ॥
किन्तु सजग है आखिर कौन ? जाहिल मछली, बगुले मौन !!
सत्ता हुई ठगी का काम । सभी रखें शतरंजी नाम ॥
बोल-बचन में माहिर चंट । तलवे चाटें, कभी फिरंट ॥ [चंट - धूर्त, फिरंट - क्रुद्ध]
लाल रंग कर रहा अनाथ । कमल घड़ी गज झाड़ू हाथ ॥
ढंग-ढंग के चिह्न तमाम । छुरी बगल में, मुख में राम !!
ओढ़ मुखौटे करते खेल । लिये चमेली वाला तेल ॥
दिया नारियल बंदर हाथ । जनता भावुक, शातिर नाथ ॥
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-सौरभ
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(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय अखिलेश भाईजी,
राष्ट्र की परिभाषा को सस्वर करने के साथ यह प्रस्तुति वस्तुतः आजके राजनैतिक माहौल की घिनौनी विसंगतियों को साझा करने का प्रयास कर रही है. आपको इस प्रयास में तथ्य और तार्किकता दिखी है तो मैं रचनाकार के तौर पर बड़भागी हुआ.
आपने जिन पंक्तियो को उद्धृत किया है वे अन्योक्ति और वक्रोक्ति के उदाहरण के तौर ही हैं.
आपकी पाठकीय संवेदना के प्रति सादर आभार.
इस छन्द पर आपके मोडिफाइड पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी.
सादर
आदरणीय सौरभ भाईजी
किसी राष्ट्र के पहलू चार । जनता-सीमा-तंत्र-विचार ॥..... सही कहा आपने
ढंग-ढंग के चिह्न तमाम । छुरी बगल में, मुख में राम !!
ओढ़ मुखौटे करते खेल । लिये चमेली वाला तेल ॥
दिया नारियल बंदर हाथ । जनता भावुक, शातिर नाथ ॥
तीनों पंक्तियाँ बहुत कुछ कह रही है, व्यंग्य भी है
हार्दिक बधाई
चौपई छंद पर मैंने भी प्रयास किया था लेकिन बात बनी नहीं ( मज़ा नहीं आया) इसलिए पोस्ट नहीं किया, आपकी चौपई पढ़कर मैंने यथा संभव संशोधन कर लिया है और आज चुनावी चौपई पोस्ट कर रहा हूँ
सादर
यह प्रयास अच्छा लगा, इसके लिए आभार.
सादर
आदरणीय सौरभ जी
प्रस्तुति का एक एक शब्द आज के राजनैतिक माहौल का आईना बन कर प्रस्तुत हुआ है
कथ्य, शब्द संयोजन, शिल्प, कथ्य विन्यास ....सभी तरह से एक संतुलित और सुन्दर प्रस्तुति
हार्दिक बधाई
सादर.
प्रस्तुति पर टिप्पणी के लिए सभी सुधी पाठकॊं और आत्मीयजनों को मेरा सादर आभार.. रचना का छन्द चौपाई न हो कर चौपई है जोकि इस बार के छंदोत्सव का छन्द था.
सादर
आदरणीय सौरभ सर:
सामयिक परिवेश का बखान करती हुई बेजोड़ रचना हुई है।
शब्दावली भी प्रभावी और शिल्प के साथ कथ्य भी।
फिरंट नया शब्द मिला,धन्यवाद आपको इसके लिए।
और हार्दिक बधाई भी आदरणीय।
सादर
इन सुन्दर सामयिक प्रभावशाली चौपाइयों के माध्यम से वर्तमान परिस्थिति पर करार व्यंग कसा है आदरणीय बधाई कबूल करें
आदरणीय सौरभ सर ..आपकी रचनाओं के माध्यम से नाना प्रकार के हिंदी छंदों की जानकारी सतत मिलती है ..वर्तमान परिद्रिस्य का बखूबी चित्रण करती रचना ..छंद में बंधी होने के कारन गुनगुनाने में भी बहुत आनंद आता है .आपकी रचनाधर्मिता को सादर नमन करते हुए ...
प्रभावशाली चौपाईयों द्वारा जबरदस्त व्यंग्य। बधाई स्वीकार करें सौरभ जी।
वाह बहुत ही सुंदर समसामयिक छंद बहुत -२ हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय सौरभ सर सादर
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