2122 1122 22
ज़ोर तूफ़ान का चल जाने दो
मुझको लहरों पे निकल जाने दो
है मुख़ालिफ़ कि हवाओं का रूख
ठहरो कुछ देर सँभल जाने दो
फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल
इक दफा दिल को मचल जाने दो
मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों मोजज़ा =चमत्कार
जी किसी तरह बहल जाने दो
आग आखिर ये बुझेगी तो ज़रूर
डर इसी आग में जल जाने दो
बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ
गिर के पत्थर पे उछल जाने दो
रात गहरी हुई जाती है अब
बस करो यार ग़ज़ल जाने दो
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गुमनाम भाई मैने जो बह्र लिया है उसके आखिरी में 22 को 112 भी किया जा सकता है इसके अलावा किसी भी अरकान के आखिर में एक अतिरिक्त लघु भी लिया जा सकता है इस प्रकार इस मिसरे को वज्न 2122 1122 112+1 आया है
आदरनीय शिज्जू भाई, बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ !!
बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ
गिर के पत्थर पे उछल जाने दो ----- बहुत खूब भाई जी , बधाइयाँ !!
आदरणीया वंदनाजी आपका हार्दिक आभार
आदरणीय मुकेश भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
बहुत ही सुंदर आदरणीय भैयाजी, बधाई
भ्रम की राह निकल जाने दो
हाल जो भी हो सँभल जाने दो.........बहुत सुंदर, एक सकारात्मक नसीहत
मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों
जी किसी तरह बहल जाने दो..........वाह! क्या बात कही है
बहुत शानदार गजल कही आपने आदरणीय शिज्जू जी, दिली बधाई स्वीकारें
फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल
इक दफा दिल को मचल जाने दो
खूबसूरत ग़ज़ल के लिए और खासकर इस दिलकश शेर के लिए दिली दाद कबूलें भाई शिज्जु शकूर साहब।
बहुत खूब, जनाब
शानदार ग़ज़ल हुई है
2122 1122 22
फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल
ye kaise please sir bataye meri samajh me nahi aaya,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों मोजज़ा =चमत्कार
जी किसी तरह बहल जाने दो
बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ
गिर के पत्थर पे उछल जाने दो
वाह बेहतरीन अशआर
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