निष्प्राण कभी लगता
जीवन
निर्मम समय-प्रहारों से
सूख-बिखरते,बू खोते
सुरभित पुष्प अतीत के.
निश्चेत 'आज' भी होता
भावी शीतल-शुष्क
हवाओं की आहट पाने को.
फिर भी कुछ अंश
जिजीविषा के रहते
गतिमान रखें जो तन को
निरा यंत्र-सा.
जो हेतु बने
दाव,हवन,होलिका के
या अस्तित्व मिटाती
झंझावर्तों में
चिनगारी...
वही एक नन्हीं सी.
द्युतिमान रहूँ मैं भी
हों तूफान,थपेड़े
या ग्रहण छाएं
अस्तित्व पर
तुम्हारी तरह
अंतिम श्वास तक.
-विन्दु
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शिज्जू जी:
आपने रचना का मर्म समझा,उसकी तह तक गये इसके लिए आपका हार्दिक आभार।
सादर
एकाकीपन जीवन में अन्यमनस्क क्षणों को बो देता है, जिनके बिरवे फूल खिलायें न खिलायें मन-धरा पर झंखार अवश्य बोझ देते हैं. इन विन्दुओं को स्वर देती आपकी कविता इनसे उबरने का संकेत भी देती है लेकिन वे संकेत अत्यंत फ़ीबल हैं.
एक वैचारिक कविता के लिए हार्दिक बधाई.
टंकण दोष मुझे व्यक्तिगत तौर पर वाचन के क्रम में थोड़े कर्कश लगे. उनके प्रति एक रचनाकार के तौर पर संवेदना बनी रहनी चाहिये ऐसा मेरा मानना है. यह कोई सुझाव नहीं मेरे अपने अपुष्ट विचार मात्र हैं.
रचना की पंक्तियों से गुजरना वाकई भला लगा, पुनः हार्दिक बधाइयाँ.
बहुत सुन्दर .... हार्दिक बधाई बाबू | सस्नेह
संवेदनाओं को बहुत सुन्दरता से प्रवाह देती इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया विन्दु जी
बहुत ही उत्तम रचना .. बहुत -२ बधाई आपको आ. वंदना जी
//निष्प्राण कभी लगता
जीवन
निर्मम समय-प्रहारों से
सूख-बिखरते,बू खोते
सुरभित पुष्प अतीत के.// आदरणीया वंदना जी निराशा से शुरू हुई कविता
// द्युतिमान रहूँ मैं भी
हों तूफान,थपेड़े
या ग्रहण छाएं
अस्तित्व पर
तुम्हारी तरह
अंतिम श्वास तक.// एक हौसले और उम्मीद पर जाके रुकती है
शब्दों के साथ भावों का प्रवाह नदी के प्रवाह में डोलती मगर अपने गंतव्य की तरफ दृढ़ता से बढ़ती नौका की तरह प्रवाहमान है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये
आपसे तो समालोचनात्मक टिप्पणी की सादर अपेक्षा रखती हूँ आदरणीय ब्रिजेश सर जी।
जिससे कुछ कमियां और सुधार मालूम हो सके।
खैर...
आपका हार्दिक आभार रचना की सराहना के लिए।
सादर
आदरणीया महेश्वरी दी..
आपका बहुत शुक्रिया।
वाह! बहुत सुन्दर कविता! आपको हार्दिक बधाई!
बहुत सुंदर प्रभावी कविता विन्दु जी
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online