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ग़ज़ल- तूने मुझे निकलने का जब रास्ता दिया

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,

जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।

हम प्रेम प्रेम प्रेम करें,  प्रेम प्रेम प्रेम,

कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।

हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,

परमात्मा ने प्रेम,  हमें सर्वथा दिया।।

वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,

देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.

मौलिक व अप्रकाशित रचना

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Comment by सूबे सिंह सुजान on May 30, 2014 at 11:14pm

vandana, ji ,आपकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी, आपका शुक्रिया

Comment by vandana on May 30, 2014 at 5:45am

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

वाह आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल 

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:59pm

laxman dhami  , लक्ष्मी जी आपकी टिप्पणी पाकर खुशी मिली है

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:57pm

Madan Mohan saxena,  आपका बहुत बहुत धन्यवाद मदन मोहन जी आप लोगों ने ग़ज़ल को पढा और अपनी राय प3कट की, लेकिन मेरा नेट से कांटेक्ट नहीं रहा था सो देर से आप लोगों का धन्यवाद कर पा रहा हूँ

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:55pm

धर्मेन्द्र कुमार सिंह,जी अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:54pm

Sarita Bhatia, जी आपकी वाह से मुझे मिला .....उत्साह।।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:53pm

  जितेन्द्र 'गीत',   आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:52pm

   coontee mukerji,         अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:51pm

 शिज्जु शकूर, 

शुक्रिया,अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:51pm

arun kumar nigam,आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

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