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ग़ज़ल- तूने मुझे निकलने का जब रास्ता दिया

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,

जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।

हम प्रेम प्रेम प्रेम करें,  प्रेम प्रेम प्रेम,

कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।

हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,

परमात्मा ने प्रेम,  हमें सर्वथा दिया।।

वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,

देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.

मौलिक व अप्रकाशित रचना

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Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:50pm

 कल्पना रामानी,जी आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:49pm

 Dr Ashutosh Mishra  गिरिराज भंडारी , जी आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:49pm

गिरिराज भंडारी , जी आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2014 at 9:17pm

आदरणीय सूबे सिंग जी , खूब सूरत ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2014 at 5:12pm

आदरणीय सूबे जी ...बहुत ही सुंदर अशारो की ये शानदार ग़ज़ल ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर 

Comment by कल्पना रामानी on May 22, 2014 at 8:34pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 21, 2014 at 10:35am

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

वाह, अति सुन्दर बात...................बधाइयाँ ....................


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 9:33pm

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय सुजान सर बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on May 20, 2014 at 8:24pm

वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,

देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.....खुब कहा सुजान जी....दुनिया में बेमुरौवत की कमी नहीं है...सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 19, 2014 at 11:15pm

बहुत सुंदर गजल हुई आदरणीय सूबे सिंह जी, हार्दिक बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

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