तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।
मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।
सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,
जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।
हम प्रेम प्रेम प्रेम करें, प्रेम प्रेम प्रेम,
कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।
हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,
परमात्मा ने प्रेम, हमें सर्वथा दिया।।
वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,
देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.
मौलिक व अप्रकाशित रचना
Comment
कल्पना रामानी,जी आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।
Dr Ashutosh Mishra गिरिराज भंडारी , जी आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।
गिरिराज भंडारी , जी आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।
आदरणीय सूबे सिंग जी , खूब सूरत ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥
आदरणीय सूबे जी ...बहुत ही सुंदर अशारो की ये शानदार ग़ज़ल ..मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर
बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें
तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।
मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।
वाह, अति सुन्दर बात...................बधाइयाँ ....................
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय सुजान सर बहुत बहुत बधाई आपको
वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,
देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.....खुब कहा सुजान जी....दुनिया में बेमुरौवत की कमी नहीं है...सादर
बहुत सुंदर गजल हुई आदरणीय सूबे सिंह जी, हार्दिक बधाई आपको
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