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काल-धारा ...(विजय निकोर)

काल-धारा

मेरा स्नेह तुम्हारी ज़िन्दगी के पन्ने पर देर तक

स्वयं-सिद्ध, अनुबद्ध

हलके-से हाशिये-सा रहा यह ज़ाहिर है

ज़ाहिर यह भी कि जब कभी

अपने ही अनुभवों के भावों के घावों को

विषमतायों से विवश तुम चाह कर भी

छिपा न सकी

हाशिये को मिटा न सकी

मिटाने के असफ़ल प्रयास में तुम

घुल-घुल कर, मिट-मिट कर

ऐंठन में हर-बार कुछ और

स्वयं ही टूटती-सी गई

 

टूटने और मिटने के इस क्रम में

हाशिये में कभी झोल-सा पड़ा दर्द का

कभी उसकी पारमिता,

उसकी दृढ़ता, उसकी गहराई

बढ़ती निखरती तुम्हारे अस्तित्व के गिर्द

ज़िद्दी बेल-सी लिपटती चली गई

 

समय की थिरकती-सिहरती थपथपी

अदृश्य तुम्हारे अश्रुओं की कँपकँपी ...

मानव-सम्बन्ध के सहज आनंद की

पूजा के दिय की लौ -सी

अरुणायित शोभा ...

यह हाशिया भी अब वही हाशिया न रहा

मिटाय-न-मिटते जामुन के पक्के

रंग-से-रंगे कपड़े-सा

तुम्हारे शुद्धतम आँचल-सा विशुद्ध स्नेह मेरा

अब हृदय-प्रकाश तुम्हारा बना, और

गहन विश्वास की तहों में स्नेह तुम्हारा

मेरे हृदय की कमल-पँखुरी में है समाया

 

आत्माओं में बहती-सी लगती है नई उमंग

सोचता हूँ  यह नियति की अनुभूति है या

है यह बहती सुखप्रद प्रतिपल

असामान्य जगत-काल-धारा...

 

             ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by vijay nikore on June 6, 2014 at 7:09am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, रचना के भाव और अभिव्यक्ति के समर्थन के लिए आपका हृदयतल से आभार।

Comment by vijay nikore on June 6, 2014 at 7:03am

//अंतरात्मा को छूती हुई रचना//

कविता की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया मीना जी।

Comment by vijay nikore on June 5, 2014 at 7:38am

//ऐसा लगा मानों पीडाओं को स्वर मिल गए......//

यदि ऐसा हुआ तो मेरा लेखन सार्थक हुआ।

आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अरुण जी।

Comment by vijay nikore on June 5, 2014 at 7:36am

//आपकी कविताएँ दिल को छू जाती हैं//

रचनाओं को इस प्रकार सराहने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शिज्जु जी।

आशा है स्नेह बनाए रखेंगे।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2014 at 12:46pm

अंतर्मन की शुद्ध मनोदशा को शाब्दिक करता आपका प्रयास अभिभूत करता है. मैं बहता चला गया, आदरणीय.

कुछ शब्दों का आपने जिस तरह से प्रयोग किया है वह अचंभित करता है.

सादर

Comment by vijay nikore on June 2, 2014 at 5:46pm

//आपकी रचनाओं में लालित्य के साथ ही एक आनंद भी होता है.....//


आपके इन शब्दों से यह रचना सार्थक हुई। काफ़ी समय के बाद मेरी रचना पर आपको देखना अच्छा लगा। सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया कुंती जी।

Comment by vijay nikore on June 2, 2014 at 5:37pm

// रचना का स्तर  हमेशा की तरह अन्तरिक्ष को छूता हुआ //

 

आपके यह शब्द मेरे लिए आपसे मिले आशीर्वाद हैं... आशीर्वाद के लिए मैं आभारी हूँ, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

 

 

 

Comment by Vindu Babu on May 29, 2014 at 9:08pm

सादर अभिवादन आदरणीय।

आपकी रचना के कुछ शब्द,बिम्ब और भाव दिमाग़ में तैर रहे थे...मन किया पुनः रसास्वादन करूं..इसलिए पुनः ब्लॉग पर आयी।

इसबार रचना और अपनी सी लगी।

आपको पुनः बधाई इस कविता के लिए।

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on May 27, 2014 at 10:07am
बहुत  ही सुन्दर भावात्मक प्रस्तुति .. बधाई .............
Comment by Vindu Babu on May 27, 2014 at 4:58am
सादर प्रणाम आदरणीय.
क्षमा करें आपकी इस सुन्दर,महत्वपूर्ण रचना तक विलम्ब से पहुंची।
अगले के हृदय की वेदना का इतनी सूक्ष्मता से अवलोकन...फिर उसका वर्णन,इतनी गहराई से,इतने प्रभावी बिम्बों के माध्यम से...सच में नत कर रहा है।
रचना को कई बार-बार पढ़ा,हर बार एक नई अनुभूति हुई।
हार्दिक बधाई आपको इस गहन अभिव्यक्ति के लिए।
सादर

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